राकेश दुबे@प्रतिदिन। जन लोकपाल आंदोलन से उपजी, आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान पर संसद के संवेदनशील स्थानों का वीडियो फेसबुक पर डालने की वजह से खतरा मंडरा रहा है, सौमेया कमेटी रिपोर्ट पर संसद का निर्णय उनका भविष्य तय करेगा इसी समय आप के दो विधायकों की गिरफ्तारी ने पार्टी की मुश्किल और बढ़ा दी है । ये घटनाएं एक के बाद ऐसे वक्त हुई हैं जब पार्टी कुछ दूसरे राज्यों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी हुई है। ये घटनाएं छवि को नुकसान पहुंचा सकती हैं, लिहाजा पार्टी के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए।
विवाद पार्टी का पीछा नहीं छोड़ रहे। एक विवाद शांत नहीं होता कि वह दूसरे विवाद की गिरफ्त में आ जाती है। आप के दो विधायक महज ग्यारह घंटे के अंतराल में रविवार को गिरफ्तार कर लिए गए। ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खान को दिल्ली पुलिस ने और महरौली के विधायक नरेश यादव को पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार किया। नरेश यादव पर कुरान की बेअदबी का आरोप है। उनके खिलाफ पंजाब के मलेरकोटला में हिंसा भड़काने की साजिश रचने का मामला दर्ज है| इस मामले में गिरफ्तार एक आरोपी ने यादव का नाम लिया था। वहीं अमानतुल्लाह के खिलाफ एक महिला ने दिल्ली के जामिया नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि जब वह बिजली कटौती की शिकायत करने विधायक के घर गई थी, तो विधायक के एक समर्थक ने उसके साथ बदसलूकी की, विधायक ने भी उसे जान से मारने की धमकी दी।
अपने दो विधायकों की गिरफ्तारी पर स्वाभाविक ही आम आदमी पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है। पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि केंद्र सरकार सियासी बदले की भावना से काम कर रही है और उसने दिल्ली पुलिस, सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियों को आम आदमी पार्टी के पीछे लगा रखा है।
बदले की भावना से कार्रवाई किए जाने का आरोप नया नहीं है, ऐसी बात वे सारे राजनीतिक कहते हैं जिन पर आंच आती है। लेकिन यह भी सही है कि कार्रवाई गलत मंशा से प्रेरित नहीं दिखनी चाहिए, वरना इसकी उलटी प्रतिक्रिया भी हो सकती है। अब तक आप के दस विधायक गिरफ्तार हो चुके हैं। एक विधायक को तो संवाददाता सम्मेलन के बीच से पुलिस पकड़ ले गई।
कुछ महीनों बाद पंजाब विधानसभा के चुनाव होने हैं।पार्टी का आरोप है कि पंजाब के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उसे परेशान करने तथा उसकी छवि खराब करने का निरंतर सुनियोजित खेल चल रहा है। वहीं भाजपा ने आप की नैतिक साख पर सवाल उठाए हैं। यह सारा प्रसंग एक अहम मसले पर सोचने को मजबूर करता है की इस सब में दिल्ली पुलिस की भी एक अहम भूमिका है । पुलिस सुधार के लिए बनी सोराबजी समिति ने पुलिस का राजनीतिक दुरुपयोग रोकने के लिए उसे राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त करने, पेशेवर स्वायत्तता देने और इसके लिए संस्थागत ढांचा बनाने तथा कानून-व्यवस्था व जांच-पड़ताल के लिए अलग-अलग एजेंसी बनाने की सिफारिश की थी। यह बेहद अफसोस की बात है कि सर्वोच्च अदालत की कई बार की हिदायत के बावजूद सरकारों और राजनीतिक दलों ने सोराबजी समिति की सिफारिशों को दरकिनार रखा है!
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए