माल्या को मोदी की तरह भुलाना होगा

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राकेश दुबे@प्रतिदिन। ब्रिटिश कानून के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति वैध पासपोर्ट पर ग्रेट ब्रिटेन आता है और बाद में उसका पासपोर्ट भले ही रद्द हो जाए, उसे उसके देश वापस भेजना जरूरी नहीं है। विजय माल्या के पास सन 1992 से ग्रेट ब्रिटेन में आवास परमिट है और वह एक आप्रवासी भारतीय हैं। 

सरकार भी शायद यह बात जानती होगी कि विजय माल्या को भारत लाना बहुत आसान नहीं है। अब तो यह साफ  हो गया है कि अगर जी-तोड़ कोशिश भी की जाए, तो विजय माल्या को भारत लाना शायद ही संभव हो और इसीलिए उन पर बैंकों का 9,000 करोड़ रुपये का जो कर्ज है, उसे वसूल पाना भी अब तकरीबन नामुमकिन लगने लगा है।

ग्रेट ब्रिटेन सरकार ने भारत की अर्जी ठुकराते हुए कहा है कि अगर भारत सरकार माल्या के प्रत्यर्पण की कोशिश करेगी, तो वह इसमें यथासंभव मदद करेगी। भले ही ब्रिटिश सरकार ऐसा कह रही हो, लेकिन प्रत्यर्पण हो पाना भी बहुत आसान नहीं है। सबसे ज्यादा मुश्किल तो यह है कि भारतीय जांच एजेंसियों को ब्रिटिश न्यायपालिका के सामने यह साबित करना होगा कि माल्या ने आपराधिक तरीके अपनाए हैं। माल्या की यह दलील हो सकती है कि बैंकों का जो पैसा डूबा, वह किसी किस्म की हेराफेरी की वजह से नहीं, बल्कि किंगफिशर एयरलाइन्स के घाटे में जाने से डूबा। फिर यह साबित करना भी मुश्किल होगा कि माल्या ने गलत तरीके से पैसे विदेश पहुंचाए या कर्ज के पैसे का दुरुपयोग किया। 

जिन बैंकों का पैसा डूबा है, उनमें से भी कुछ यह नहीं मानतीं कि माल्या ने पैसे की हेराफेरी की। कर्ज देने वाले बैंकों के लिए मुश्किल यह है कि उनके अपने बड़े अधिकारी और प्रबंधक भी इस मामले में फंस रहे हैं, क्योंकि वे जिस तरह से नियमों को ताक पर रखकर माल्या को कर्ज देते चले गए, उससे वे संदेह के घेरे में आते हैं। वैसे भी, प्रत्यर्पण का मामला बनाना और उसे स्वीकार करवाना आसान नहीं है।

खबरों के मुताबिक, इस वक्त ग्रेट ब्रिटेन से भारत प्रत्यर्पण के 131 मामले चल रहे हैं। जहां तक ऐसे मामलों की सफलता का सवाल है, तो इकबाल मिर्ची और नदीम सैफी जैसे आपराधिक मामलों वाले लोगों का प्रत्यर्पण नहीं हो पाया, तो विजय माल्या जैसे व्यक्ति का प्रत्यर्पण कितना मुश्किल हो सकता है, इसे आसानी से समझा जा सकता है। विजय माल्या उद्योगपति हैं, और उन्होंने ग्रेट ब्रिटेन में काफी निवेश कर रखा है, वहां उनकी काफी संपत्ति है और पैसे की ताकत तो हर जगह चलती है।ज्यादा आशंका यही है कि विजय माल्या का मामला भी ललित मोदी  की तरह बनकर रह जाएगा और जो पैसे बैंकों और राजनेताओं के साथ सांठगांठ के जरिये माल्या ने डुबोए हैं, उनकी भरपायी टैक्स चुकाने वाले आम नागरिकों को ही करनी होगी। 

तमाम पार्टियों से माल्या के मधुर संबंध रहे हैं और उनसे दोस्ताना रहे कई राजनेता भी नहीं चाहेंगे कि माल्या भारत आएं। कानूनविद यह भी कह रहे हैं कि अगर कभी माल्या को भारत लाया गया, तो भारतीय अदालतों में भी उनके खिलाफ कोई जुर्म साबित करना बहुत मुश्किल होगा। राजनेता और उनके दोस्त उद्योगपतियों का गठजोड़ हमारे तंत्र और पैसे का कैसे दोहन करता है, इसका एक बड़ा उदाहरण विजय माल्या हैं। देखना यह है कि माल्या को भारत लाने की अपनी घोषणा पर एनडीए सरकार कैसे अमल कर पाती है?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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