
यह बात इंदिरा गांधी के निजी चिकित्सक केपी माथुर ने अपनी नई किताब ‘द अनसीन इंदिरा गांधी’ में कही है। कोणार्क प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में कहा गया है ‘लेकिन इंदिरा का झुकाव मेनका को उनके करीब नहीं ला पाया। सोनिया आमतौर पर घरेलू मामलों का जिम्मा संंभालती थीं जबकि राजनीतिक मामलों में प्रधानमंत्री मेनका के विचारों पर गौर करती थीं क्योंकि मेनका की राजनीतिक समझ अच्छी थी।’
सफदरजंग अस्पताल के पूर्व चिकित्सक माथुर ने करीब 20 साल तक दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चिकित्सक के तौर पर काम किया और वह हर सुबह इंदिरा से मिलते थे। यह सिलसिला वर्ष 1984 में इंदिरा का निधन होने तक चला। इंदिरा के साथ अपने अनुभवों को ही डा. माथुर ने किताब की शक्ल दी है। किताब में दावा किया गया है कि संजय गांधी के निधन के कुछ ही साल बाद मेनका ने हालात से सामंजस्य स्थापित करने के बजाय प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया।
डा. माथुर ने लिखा है ‘संजय के निधन के बाद इंदिरा का मेनका के प्रति रवैया बेहद नर्म हो गया। वह तो यह भी चाहती थीं कि मेनका राजनीति में उनकी मदद करें।’ किताब में दावा किया गया है ‘लेकिन मेनका अक्सर उन लोगों के साथ रहीं जो राजीव के विरोधी थे। इसके चलते संजय विचार मंच नामक संगठन बना जो संजय गांधी की विचारधारा को आगे ले जाना चाहता था। मेनका और उनके वह साथी इस मंच का हिस्सा थे जिनके बारे में कहा जाता था कि वह राजीव के खिलाफ हैं। हालांकि मुझे यह कभी पता नहीं चल पाया कि वह क्या कर रहे हैं।’
डा. माथुर ने किताब में संजय विचार मंच के उस सम्मेलन का जिक्र किया है जो लखनऊ में हुआ था। उनके अनुसार, इंदिरा तब विदेश दौरे पर थीं और वहां से उन्होंने मेनका को संदेश भेजा था कि वह इस सम्मेलन को संबोधित न करें। लेकिन मेनका नहीं मानीं और सम्मेलन को संबोधित किया।
किताब के अनुसार राजीव और सोनिया के विवाह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री और सोनिया के बीच तालमेल स्थापित होते समय नहीं लगा। सोनिया इंदिरा को बहुत सम्मान देती थीं और इंदिरा सोनिया को बहुत प्यार करती थीं। सोनिया ने जल्द ही घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।