जबलपुर में खिल रहे चमत्कारी सहस्त्रदल कमल की कथा

जबलपुर/मझौली। शहर से लगभग 40 किमी दूर मझौली स्थित नरीला तालाब में लगभग विलुप्त हो चुका सहस्त्रदल (1008 पंखुड़ी वाला) कमल फिर खिलने लगा है। तालाब में बढ़ते प्रदूषण के चलते ये कमल पिछले करीब 5 सालों से दिखना बंद हो गया था। 23 अप्रैल को यह कमल तालाब में खिला तो ग्रामीणों के चेहरे भी खिल उठे।

खुदाई के दौरान मिले थे विष्णु वाराह
ग्रामीणों के मुताबिक तालाब की खुदाई के दौरान यहां से भगवान विष्णु वाराह अवतार की मूर्ति भी मिली थी। मूर्ति को गांव में ही एक मंदिर बनाकर स्थापित किया गया। यह मूर्ति यहां आज भी है।

सहस्त्रदल कमल की पहचान
रंग सफेद
पंखुड़ियों की संख्या-1008
आकार-करीब 6 इंच

आदिशक्ति को प्रसन्न करने का सबसे सरल साधन
कहा जाता है कि सहस्त्रदल कमल आदिशक्ति को प्रसन्न करने का सबसे सरल साधन है। मां दुर्गा की साधना में सहस्त्रदल कमल उपस्थित हो तो मनवांछित फल अवश्य ही मिलता है। इस संदर्भ में एक कथा भी है। 

सहस्त्रदल कमल के चमत्कार की कथा
जब श्रीराम की सेना के सम्मुख रावण खड़ा था तो रावण की मायावी शक्ति के आगे राम की सेना टिक नहीं पायी। वानर सेना मारे डर के तितर-बितर भागने लगी। हजारों वानर सैनिक रावण के घातक प्रहार से मारे गये। सूर्यास्त के समय जब दोनों की सेना अपने-अपने शिविरों में लौटे, तब विजय के दंभ के कारण चलते हुए राक्षस अपने भारी पगों से पृथ्वी को कंपा रहे थे। उनके विजय हर्ष के कोलाहल से जैसे सारा आकाश गूँज रहा था। इसके विपरीत वानर-सेना के मन में घोर निराशा थी। अपनी सेना के मुख-मंडल पर व्याप्त निरुत्साह को देखकर राम का हृदय व्याकुल हो गया। उन्हें लगने लगा कि रावण की शक्ति और पराक्रम के बल के आगे अपनी सेना टिक नहीं पायेगी। 

सुग्रीव, विभीषण, जांबवान आदि वानर; विशेष दलों के सेनापति; हनुमान, अंगद, नल, नील, गवाक्ष आदि अपनी सेनाओं को विश्राम शिविरों में लौटाकर अगली सुबह होनेवाले युद्ध के लिए विचार-विमर्श करने हेतु बड़े ही मंद कदमों से अर्थात पराजय की चिंता में डूबे हुए वहाँ पहुँचे। 

रघुकुल भूषण श्रीराम एक श्वेत पत्थर के आसन पर बैठ गए। उसी क्षण स्वभाव से चतुर हनुमान उनके हाथ-पांव धोने के लिए स्वच्छ पानी ले आए। राम के मन में हार-जीत का संशय भाव रह-रहकर उद्वेलित हो रहा था। राम का जो हृदय शत्रुओं का नाश करते समय आज-तक कभी भी थका या भयभीत नहीं हुआ था, कभी विचलित नहीं हुआ था, वही इस समय रावण से युद्ध करने के लिए व्याकुल होकर भी, बार-बार अपनी असमर्थता और पराजय को स्वीकार कर रहा था। 

वृद्ध जाम्बवन्त ने राम को महाशक्ति की आराधना करने की सलाह दी और कहा कि, हे राम ! यदि रावण शक्ति के प्रभाव से हमें डरा सकता है तो निश्चय ही आप महाशक्ति की पूर्ण सिद्धि प्राप्त करके उसे नष्ट कर पाने में समर्थं होंगे। अतः आप भी शक्ति की नव्य कल्पना करके उसकी पूजा करो। आपके साधना की सिद्धि जब तक प्राप्त नहीं हो पाती, तब तक युद्ध करना छोड़ दीजिए। तब तक विशाल सेना के नेता बनकर लक्ष्मण जी सबके बीच में रहेंगे। 

जाम्बवन्त के परामर्शानुसार श्रीराम ने हनुमानजी को 108 सहस्त्रदल कमल लाने का आदेश दिया। हनुमानजी ने वैसा ही किया। आठ दिन प्रभु श्रीराम युद्ध के मैदान से दूर माँ भगवती की पूजा में लीन हो गए। राम द्वारा महाशक्ति की आराधना के पाँच दिन क्रम से बीत गए। उनका मन भी उसी क्रम से विभिन्न साधना-चक्रों को पार करते हुए ऊपर ही ऊपर उठता गया। प्रत्येक मंत्रोच्चार के साथ एक सहस्त्रदल कमल महाशक्ति को वे अर्पित कर देते। इस प्रकार वे अपनी साधनाहित किया जानेवाला मंत्र-जाप और स्तोत्र पाठ पूरा कर रहे थे। 

राम की साधना का जब आठवाँ दिन आया तो ऐसा लगने लगा जैसे उन्होंने सारे ब्रम्हांड को जीत लिया। यह देखकर देवता भी स्तब्ध-से होकर रह गए। अब पूजा का एक ही सहस्त्रदल कमल महाशक्ति को अर्पित करने के लिए बाकी रह गया था। राम का मन सहस्रार देवी दुर्गा को भी पार कर जाने के लिए निरंतर देख रहा था। रात का दूसरा पहर बीत रहा था। तभी देवी दुर्गा गुप्त रूप से वहाँ स्वयं प्रकट हो गई और उन्होंने पात्र में रखे एक शेष कमल पुष्प को उठा लिया। 

देवी-साधना का अंतिम जाप करते हुए, राम ने जैसे ही अंतिम सहस्त्रदल कमल लेने के लिए अपना हाथ बढाया, उनके हाथ कुछ भी न लगा। परिणामस्वरूप उनका साधना में स्थिर मन घबराहट के कारण चंचल हो उठा। वे अपनी निर्मल आँखें खोलकर ध्यान की स्थिति त्याग वास्तविक संसार में आए और देखा कि पूजा का पात्र रिक्त पड़ा है। यह जाप की पूर्णता का समय था, आसन को छोड़ने का अर्थ साधना को भंग करना था। अतः राम के दोनों नयन निराशा के आँसुओं से एक बार फिर भर गए।

बस, अब यही उपाय है, राम ने बादलों की गंभीर गर्जना के स्वर में स्वयं से कहा- ‘‘ मेरी माता मुझे सदा ही कमलनयन कहकर पुकारा करती थीं। इस दृष्टि से मेरी आँख के रूप में दो नीले कमल अभी भी बाकी हैं। अतः हे माँ दुर्गे ! अपनी आँख रूपी एक कमल देकर मैं अपना यह मंत्र या स्तोत्र-पाठ करता हूँ।’’ ऐसा कहकर राम ने अपने तरकश की तरफ देखा, जिसमें एक ब्रह्म बाण झलक रहा था। राम ने लक-लक करते उस लंबे फल वाले बाण को अपने हाथ में ले लिया। अस्त्र अर्थात्‌ बाण को बाएँ हाथ में लेकर राम ने दाएँ हाथ से अपनी दायाँ नेत्र पकड़ा। वे उस नयन को कमल के स्थान पर अर्पित करने के लिए तैयार हो गए। जिस समय अपना नेत्र बेंधने का राम का पक्का निश्चय हो गया, सारा ब्रह्मांड भय से काँप उठा। उसी क्षण बड़ी शीघ्र गति से देवी दुर्गा भी प्रकट हो गई।”

महाशक्ति दुर्गा ने यह कहते हुए राम का हाथ थाम लिया कि धन्य हो। धैर्यपूर्वक साधना करनेवाले राम, तुम्हारा धर्म भी धन्य-धन्य है। तब राम ने पलकें उठाकर सामने देखा- अपने परमोज्ज्वल और तेजस्वी रूप में साक्षात्‌ दुर्गा देवी खड़ी थीं। उनका स्वरूप साकार ज्योति के समान था। दस हाथों में अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्र सजे हुए थे। मुख पर मंद मुस्कान झिलमिला रही थी। उस मुस्कान को देखकर सारे संसार की शोभा जैसे लज्जित होकर रह जाती थी। उसके दाईं ओर लक्ष्मी और बायीं ओर युद्ध की वेश-भूषा में सजे हुए देव-सेनापति कार्तिकेय जी थे। मस्तक पर स्वयं भगवान शिव विराजमान थे। देवी के इस अद्‌भुत रूप को निहार मंद स्वरों में वंदना करते हुए राम प्रणाम करने के लिए उनके चरण-कमलों में झुक गए। 

अपने सामने नतमस्तक राम को देखकर देवी ने आशीर्वाद और वरदान देते हुए कहा – ” हे पुरुषोत्तम राम ! निश्चय ही तुम्हारी जय होगी।” इतना कहकर वह महाशक्ति राम में विलीन हो गई। उन्हीं में अंतर्हित होकर रह गई।

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