हादसों पर राजनीति

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश में हादसे कई रूपों में सामने आ रहे हैं, इनमे  कुछ भौतिक किस्म के हैं तो कुछ देश में चल रही राजनीति के नतीजे हैं | हादसों का यह सिलसिला कुछ इस तरह चल रहा है कि नागरिक अब उनसे उदासीन-से होने लगे हैं| कोलकाता में सबसे घनी आबादी वाले इलाके में फ्लाईओवर के बैठ जाने से सैकड़ों जिंदगियों की डोर टूट गई. मगर दूसरे हिस्सों में रहने वालों में इस पर शायद ही कोई प्रतिक्रिया नहीं  होती | हादसे इस कदर हमारी जिंदगी का हिस्सा बनते जा रहे हैं कि हम उन्हें अपनी नियति मानकर निरपेक्ष हो जाते  हैं. इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि हमें कोई समाधान होता दिखाई नहीं देता है|

देश में सर्वाधिक लोग हादसों के शिकार होने लगे हैं. सड़क-रेल हादसों में सबसे ज्यादा मौतें हमारे ही देश में दर्ज की जा रही हैं| आत्महत्याओं के आंकड़े भी हमारे देश में सर्वाधिक हैं|किसानों की खुदकुशी का सिलसिला तो थमने का नाम ही नहीं ले रहा है| बल्कि हर आने वाले वर्ष में कुछ बढ़ता ही जा रहा है. इसी तरह, 16 से 35 वर्ष आयुवर्ग में आत्महत्याओं के आंकड़े भी तेजी से बढ़ रहे हैं. ये घटनाएं इतनी पुनरावृत्ति में होती हैं कि इन्हें अपवाद मानकर नहीं भुलाया जा सकता|

इनकी वजहें क्या हैं? हादसे हमारी जिंदगी का हिस्सा क्यों होते जा रहे हैं? ये सवाल किसी भी जीवंत समाज और देश को हिला देने के लिए काफी हैं| लेकिन हमारी मुख्यधारा की राजनीति महज एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपना काम तमाम कर लेती है.| न कोई जवाबदेही तय की जाती है, न ऐसा कोई विमर्श होता है, जो किसी समाधान की ओर ले जाएं. इसके विपरीत, हम ऐसी बहसों में ज्यादा उलझे रहते हैं, जिनसे भावनाओं का एक छद्म वातावरण तैयार होता है|

देश के विभिन्न हिस्सों में हादसों में मरने वालों पर हमारी भावनाएं उफान नहीं लेंगी. न यह सोचा जाएगा कि इतनी घनी आबादी वाले इलाके में जब कोई निर्माण किया जाता है तो कैसी पुख्ता सावधानियां बरती जानी चाहिए| विपक्षी राजनैतिक पार्टियां ममता बनर्जी पर आरोप मढ़ने में लगी हैं और ममता भी इसकी राजनैतिक नुक्सान भरपाई में|लगभग  हर हादसे में यही होता है | आदमी की जान क्यों गई, इससे किसीको कोई मतलब नहीं | हाँ, इससे राजनीतिक फायदा कैसे हो, इस पर सारे राजनीतिक दल टूट पड़ते हैं |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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