सिर्फ “ट्विट” से काम नहीं चलेगा मोदी जी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 अप्रैल को बाबा साहब के जन्मस्थान महू उन्हें श्रद्धांजलि देने आ रहे हैं ,पिछले दिनों उन्होंने नोएडा में 'स्टैंडअप इंडिया' का आगाज महिलाओं और दलितों का विकास सुनिश्चित करने के लिए किया और उनके बीच 5,000 ई-रिक्शे बांटे। उन्होंने कहा कि वे ई-रिक्शा चालक परिवारों के साथ वह जल्दी ही 'चाय पर चर्चा' करेंगे। सारे अनुमान गलत हो गये सब सोचते थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचार की घटनाओं का वह विरोध करेंगे और पीड़ित व्यक्तियों और उनके परिवारों को न्याय दिलवाने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे।  सच यह है कि दलितों पर अत्याचार की घटनाएं देश के हर कोने में हो रही हैं।

डेल्टा मेघवाल गरीब दलित परिवार की एक प्रतिभाशाली सोलह वर्षीय छात्रा थी, जो टीचर ट्रेनिंग हासिल करने के लिए राजस्थान के बाड़मेर से बीकानेर के कॉलेज में आई थी। कुछ साल पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उसे इनाम भी दिया था। डेल्टा ने सपने देखे होंगे कि वह एक अच्छी शिक्षिका बनकर गरीब मां-बाप को बेहतर जिंदगी गुजारने का मौका उपलब्ध कराएगी। होली की छुट्टी थी। चार अन्य लड़कियां के साथ डेल्टा हॉस्टल में ही रही। 27 मार्च को उससे एक पुरुष शिक्षक का कमरा साफ करने को कहा गया। दूसरे दिन उसकी लाश कॉलेज परिसर में एक कुएं में मिली। उस लाश को पुलिस कचरा उठाने वाली गाड़ी में पोस्टमार्टम के लिए ले गई। कॉलेज की ओर से कोई रिपोर्ट या कार्रवाई नहीं हुई। इसके विरोध में पूरे देश में धरना-प्रदर्शन के बाद ही प्रशासन हरकत में आया, पर न्याय की लंबी लड़ाई की शुरुआत भी नहीं हुई है।

डेल्टा की मौत के ही दिन तमिलनाडु की कौशल्या को डॉक्टरों ने खतरे से बाहर घोषित किया। अपनी बीसवीं वर्षगांठ से एक दिन पहले वह अपने पति के साथ अपने लिए तोहफा खरीदने गई थी। दोनों खुश थे। अपने सपनों के साकार होने का विश्वास उनके अंदर प्रबल होने लगा था। कौशल्या ने दलित सहपाठी शंकर से शादी की थी। परिवार के विरोध से बचने के लिए दोनों छिपकर रह रहे थे। कौशल्या ने पढ़ाई छोड़कर नौकरी कर ली थी। अब शंकर की पढ़ाई खत्म हो गई थी और उसकी भी अच्छी नौकरी लगने वाली थी। कौशल्या अपनी छूट चुकी पढ़ाई फिर से शुरू करने वाली थी। अचानक भरे बाजार में, दिन-दहाड़े कौशल्या के पिता और रिश्तेदारों ने दोनों पर हंसिये से वार किया। शंकर वहीं मर गया। लहूलुहान कौशल्या को अस्पताल लाया गया। उसकी जान तो बच गई, पर उसके सपने बिखर गए। सरकार और प्रशासन, दोनों मौन हैं। बस, जीवन बीमा निगम के कर्मचारियों की लाल झंडे वाली यूनियन है, जिसने कौशल्या को वचन दिया है कि उसकी पढ़ाई का जिम्मा वह लेगा। रोहित, डेल्टा, कौशल्या-पता नहीं, कितने लोगों के सपने चकनाचूर होते जा रहे हैं। इसकी कहीं कोई चर्चा नहीं है।

यह सब बताता है की समाज किस दिशा में जा रहा है | यह तो निश्चित है, उस दिशा में नही जिस दिशा में संविधान या डॉ अम्बेडकर उसे ले जाना चाहते थे | राष्ट्र के सामने इस विषय अनेक प्रश्न है पर किसीको  इन सवालों के जवाब खोजने की फुर्सत नहीं है | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस गंभीर मुद्दे पर ट्विटसे काम चला लेते हैं | इस विषय पर सम्पूर्ण बहस और प्रभावी नीति की जरुरत है ट्विट से हल नहीं निकलेगा | 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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