
शिवराज सरकार ने 2016-17 के बजट को पिछले सालों की अपेक्षा कई गुना बढोत्तरी कर दी है। आगामी वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार करीब ने दलित आदिवासी कल्याण के लिए काम करने वाले विभागों के बजट में 26 से 29 फीसदी बजट की बढोत्तरी की गयी है। माना जा रहा है कि 2018 में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए भाजपा दलित और आदिवासियों में अपनी पहुंच बढ़ाना चाहती है।
550 करोड रूपए खर्च करेगी सरकार
प्रदेश सरकार के 2016-17 के बजट में दलित आदिवासी कल्याण के लिए काम करने वाले विभागों के लिए करीब 550 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। अभी तक इन विभागों के लिए सरकार इतने बढ़े पैमाने पर बजट प्रावधान नहीं करती थी। लेकिन इस बार की सरकार की मेहरबानी को सीधे चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। वैसे भी आगामी साल में दलित आदिवासी निकायों में चुनाव भी हैं और सरकार इन चुनावों में भी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश कर रही है।
82 अनुसूचित जाति-जनजाति की विधानसभा सीटें
मध्यप्रदेश में दलित आदिवासी विधानसभा सीटों की बात करें तो प्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से जहां 35 अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं तो 47 सीटों अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। लेकिन अमूमन देखने में आया है कि इन सीटों पर या तो कांग्रेस का दबदबा रहा है या फिर बसपा का। भाजपा की लाख कोशिशों के बाद भी दलित और आदिवासियों ने भाजपा से नजदीकी नहीं बढ़ायी। भाजपा चाहती है कि अगर दलित आदिवासी वोट बैंक पर भाजपा का प्रभाव बढ़ता है तो भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं और पार्टी को काफी फायदा होगा।
दलित एंजेडे पर काम कर रही है भाजपा-आरएसएस
केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद भाजपा ने दलित आदिवासी वोट बैंक पर ज्यादा फोकस किया है। आरएसएस भी दलित आदिवासियों को रिझाने के लिए भरपूर कोशिश कर रहा है। पिछले दिनों आरएसएस द्वारा पूरे देश में समरसता यज्ञ का आयोजन किया गया। वहीं रविदास जयंती के मौके पर भाजपा द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित कर वोट बैंक को रिझाने की कोशिश की गयी। आगामी 14 अप्रेल को महू में अंबेडकर जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में आयोजित कार्यक्रम को भी इसी कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।