
सबसे बड़ी समस्या यह है कि योजना कितनी भी अच्छी हो, उसका जमीन पर क्रियान्वयन उतना प्रभावशाली नहीं हो पाता। यह देखा गया है कि खेती के लिहाज से महत्वपूर्ण पंजाब या मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ही फसल बीमा लेने वाले किसान बहुत कम हैं, लेकिन जहां फसल बीमा योजना में बड़ी तादाद में किसान शामिल हैं, जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक या तमिलनाडु, वहां धोखाधड़ी और फर्जीवाड़ा बहुत ज्यादा है। किसान, बैंक अधिकारी और सरकारी कर्मचारी मिलकर फर्जी दावे बनाकर बीमा का पैसा ले लेते हैं। इस तरह इस वक्त देश में दो तरह के क्षेत्र हैं। एक तरह के क्षेत्र में बीमा लगभग नदारद है, दूसरे क्षेत्र में बीमा का विस्तार बहुत है, लेकिन उसमें धोखाधड़ी भी बहुत हो रही है।
इन सबके बावजूद बीमा की सुरक्षा सचमुच मिले, इसके लिए कृषि क्षेत्र में सुधारों की सबसे ज्यादा जरूरत है। सिंचाई की अच्छी सुविधाएं और वैज्ञानिक सलाह-सहायता से खेती की अनिश्चितता को काफी हद तक कम किया जा सकता हैै।मौसम पर इंसान का कोई नियंत्रण नहीं है, इसलिए मौसम की वजह से अनिश्चितता खत्म तो नहीं हो सकती, और ऐसी स्थिति में बीमा की उपयोगिता बनी रहेगी। खेती में विकास हो और किसानों की आय बढ़े, तो वे भी बीमा लेने के प्रति उत्साहित होंगे, वरना वे प्रीमियम चुकाने के बोझ से बचने के लिए बीमा से ही कन्नी काटते रहेंगे। कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधारों के हिस्से के रूप में अगर बीमा को देखा जाएगा, तभी वह ज्यादा प्रभावशाली हो पाएगा।
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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