
कश्मीर समास्या पर एक नजर
कश्मीर की समास्या भारत और पाकिस्तान के मध्य सबसे अधिक उलझी हुई समास्या है। स्वतत्रंता के पश्चात् दो नये राज्य बने, तो देशी रियासतो को स्वतंत्रता प्रदान की गई, कि वह अपनी इच्छानुसार भारत अथवा पाकिस्तान मे विलय हो सकती है, अथवा स्वत्रंत रह सकती है। अधिकाॅश रियासते भारत अथवा पाकिस्तान मे मिल गई।
कश्मीर भारत की उतर- पश्चिम सीमा पर स्थित होने के कारण भारत और पाकिस्तान दोनो को जोडता है। कश्मीर के राजा हरीसिंह ने अपनी रियासत जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र रखने का निर्णय लिया। राजा हरीसिंह सोचते थे। कि कश्मीर यदि पाकिस्तान मे मिलता है, तो जम्मू कश्मीर की हिन्दू जनता और लद्धाख की बौद्ध जनता के साथ अन्याय होगा और यदि वह भारत मे मिलता है। तो मुस्लिम जनता के साथ अन्याय होगा। अतः उसने यथा स्थिति बनाऐ। रखी और विलय के बिषय मे तत्काल कोई निर्णय नही लिया।
22 अक्टुबर 1947 उतर पश्चिम सीमा प्रान्त के कबायलियो और अनेक पाकिस्तानियो ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। पाकिस्तान कश्मीर को अपने मे मिलाना चाहता था। अतः उसने अपनी सीमाओ पर सेना को इकट्ठा कर चार दिनो के भीतर ही हमलाकर दिया। आक्रमणकारी श्रीनगर से 25 मील दूर बारामूला तक आ पहुॅचे। कश्मीर के शासक ने आक्रमणकारियो से अपने राज्य को बचाने के लिये भारत सरकार से सैनिक सहायता मांगी, साथ ही कश्मीर को भारत मे सम्मिलित करने की प्रार्थना की। भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। और भारतीय सेनाओ को कश्मीर भेज दिया।
भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जबाहर लाल नेहरु ने यह आश्वासन दिया कि युद्ध समाप्ति के पश्चात् कश्मीर मे जब शान्ति हो जायेगी। तब कश्मीर की जनता जनमत संग्रह के आधार पर यह तय करेगी कि वे किसके साथ मिलना चाहते है। प्रारंभ मे पाकिस्तान सरकार ने अधिकारिक रुप से कश्मीर के बारे मे कोई मत व्यक्त नही किया था। अतः भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से कबायलियो का मार्ग बन्द करने को कहा, परन्तु जब इस बात के प्रमाण मिलने लग गऐ। कि पाकिस्तान सरकार कबायलिये की सहायता कर रही है। तो गवर्नर जनरल लार्ड माउन्टबेटन की सलाह पर जनवरी 1948 को भारत सरकार ने सुरक्षा परिषद् मे यह शिकायत की। कि कबायलियो ने पाकिस्तान से सहायता प्राप्त करके भारत के एक अंग कश्मीर पर आक्रमण कर दिया है, जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है।
स्ंयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् ने इस समास्या के समाधान के लिये पाँच राष्ट्रो के चेकोस्लाविया, अर्जेण्टाइना, अमेरिका, कोलाम्बिया, और वेल्जियम, के सदसयो का एक दल बनाया, इस दल को मौके पर जाकर स्थिति का अवलोकन करना था। और समझौते का मार्ग ढूॅढना था। संयुक्त राष्ट्र संघ के दल ने मौके पर जाकर स्थिति का अध्ययन किया तथा अपनी रिपोर्ट दी रिपोर्ट मे कहा गया। जो इस प्रकार है।
1-पाकिस्तान अपनी सेनाएॅ कश्मीर से हटाऐ। तथा कबायलियो और ऐसे लोगो को जो कश्मीर के निवासी नही है। वहाॅ से हटाने का प्रयास करे।
2-जब पाकिस्तान उपर्युक्त वर्णित शर्तो को पूर्ण कर लेगा तब आयोग के निर्देशो पर भारत भी अपनी सेनाओ का अधिकाॅश भाग वहाॅ से हटा ले।
3-अन्तिम समझौते होने तक युद्ध विराम की स्थिति रहेगी। और भारत कश्मीर मे स्थानीय अधिकारियो के सहयोग के लिये उतनी ही सेनाएॅ रखेगा जितनी कानून और व्यवस्था बनाएॅ रखने के लिये आवश्यक होगा।
इस सिद्धान्त के आधार पर दोनो पक्ष लम्बी वार्ता के बाद 1 जनवरी 1949 को युद्ध विराम के लिये। सहमत हो गऐ। कश्मीर के विलय का निर्णय जनमत संग्रह के आधार पर होना था।संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनमत संग्रह की शर्तो को पूर्ण करने के लिये। एक अमेरिकी अधिकारी को प्रशासक के रुप मे नियुक्त किया। प्रशासक ने भारत एवं पाकिस्तान से जनमत संग्रह के आधार पर चार्चा की परन्तु उसका कोई परिणाम नही निकला। अतः उसने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
सन 1965 के युद्ध मे भारत को पाकिस्तान पर विजयी प्राप्त हुई।
सोवियत संघ ने दोनो देशो के पक्षो को वार्ता के लिये। ताशकन्द आमंत्रित किया था। 4 जनवरी 1966 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खाॅ तथा भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के मध्य ताशकन्द मे वार्ता आरंभ हुई। अतः 19 जनवरी 1966 को ऐतिहासिक ताशकन्द समझौते पर दोनो पक्षो ने हस्ताक्षर किये।