
शहर अध्यक्ष के चुनाव में तो साम, दाम, दंड और भेद की रणनीति अपनाकर किसी को दावेदारी नहीं करने दी गई थी, लेकिन ग्रामीण में चुनाव के लिए 4 आवेदन पेश होने के बाद भी संगठन ने चुनाव नहीं कराए। जिसे दबी जुबां में जमीनी कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेता तक लोकतंत्र की हत्या करार दे रहे हैं। गौरतलब है कि शहरी व ग्रामीण जिलाध्यक्ष के लिए 27 व 28 दिसंबर को चुनाव प्रक्रिया रखी गई थी जिसमें शहर अध्यक्ष के रूप में देवेश शर्मा की ताजपोशी हो गई, लेकिन ग्रामीण में जब श्री तोमर के करीबी वीरेंद्र जैन को जिलाध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया तो जितेंद्र रावत, बृजमोहन गुर्जर एवं कुंदन बघेल ने भी ये कहते हुए दावेदारी की, कि चुनाव होना चाहिए। इसके बाद से ग्रामीण में जिलाध्यक्ष की घोषणा अटक गई। यहां से ग्रामीण की राजनीति में अच्छा दखल रखने व प्रदेश सरकार के मंत्री नरोत्तम मिश्रा की ओर से प्रस्तावित कार्यकर्ताओं को भी तवज्जो नहीं दी गई।
बढ़ सकती है संगठन की परेशानी
स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा व उनके समर्थकों का ग्रामीण की राजनीति में सीधा और खासा दखल है। वहीं वीरेंद्र जैन श्री मिश्रा के विरोधी हैं, ऐसे में सामंजस्य नहीं बनेगा व संगठन कमजोर हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्र में ब्राह्मण, गुर्जर, बघेल जाति का वर्ग ज्यादा है। ऐसे में श्री जैन को इन वर्गों का विरोध झेलना पड़ सकता है क्योंकि इस वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वालों ने ही श्री जैन की दावेदारी का सख्त विरोध किया था।
फिर क्यों रखे थे चुनाव
पार्टी ने चुनाव प्रक्रिया रखी थी और हमने दावेदारी पेश की थी। फिर भी यदि चुनाव न कराकर जिलाध्यक्ष मनोनीत किया गया है तो ये गलत है। इस मामले को हम संगठन में वरिष्ठ नेतृत्व के समक्ष रखकर पूछेंगे कि जब ऐसा ही करना था तो चुनाव क्यों रखे गए।
बृजमोहन गुर्जर, (जिलाध्यक्ष के लिए दावेदारी करने वाले ग्रामीण कार्यकर्ता)