स्वाइन फ्लू नहीं, डॉक्टर्स की बेवकूफियों से मर रहे है मरीज: IDSP डेथ ऑडिट रिपोर्ट

भोपाल। प्रदेश में स्वाइन फ्लू रोगियों की मौत बीमारी से नहीं बल्कि डॉक्टरों की लापरवाही से हुई। आलम ये है कि डॉक्टरों को पता ही नहीं है कि स्वाइन फ्लू के मरीजों को वेंटीलेटर कब और कितने समय तक लगाना चाहिए। इसका खुलासा हुआ केन्द्र की इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलेंस प्रोग्राम (आईडीएसपी) टीम की डेथ ऑडिट रिपोर्ट से।

रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि डॉक्टरों को पता ही नहीं है कि कई मरीज उनके अनुभवहीन होने के कारण मारे गए। मरीजों को समय पर ऑक्सीजन ही नहीं मिली। रिपोर्ट के मुताबिक यदि मरीजों को समय पर वेंटीलेटर मिल जाता तो इनकी जान बचाई जा सकती थी।

आईडीएसपी की टीम ने 1 जुलाई से 13 अक्टूबर 2015 तक स्वाइन फ्लू से हुई 33 मरीजों की मौतों की केस शीट देखी तो पता चला कि इसमें से 90 फीसदी मरीज ऐसे हैं, जिन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। स्वास्थ्य संचालनालय के निर्देश पर प्रदेश भर में स्वाइन फ्लू के मरीजों को वाई-पेप वेंटिलेटर पर रखा था, जबकि इन मरीजों को केवल वेजिव वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा जाना था।

देश में स्वाइन फ्लू की डेथ रेट सर्वाधिक मध्यप्रदेश में है। 13 अक्टूबर के बाद प्रदेश में स्वाइन फ्लू से 10 और मौतें हुईं। यानी 1 जुलाई से 5 दिसंबर 2015 तक 148 पॉजिटिव मरीजों में से 43 की मौत हो चुकी हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो हर तीसरे पॉजिटिव मरीज की मौत हुई है।  टीम की जांच के समय तक कुल 33 मरीजों की मौत हुई, इनमें 28 मरीजों को वेंटिलेटर लगाया गया था।

जांच में सामने आया कि वेंटिलेटर सपोर्ट देने का फैसला देर से लिया गया। इसके कारण ऑक्सीजन की कमी से मरीज के लिवर, किडनी और हार्ट सहित अन्य अंगों ने काम करना बंद कर दिया।
  • वेंटिलेटर का प्रोटोकॉल
  • मरीज के खून में ऑक्सीजन का स्तर 90 फीसदी से कम हो।
  • ऑक्सीजन सपोर्ट के बाद भी ऑक्सीजन का स्तर न बढ़े।
  • ब्लड प्रेशर गिरने पर व खून के तय मापदंडों में कमी आए।
  • ऑक्सीजन लेवल जांचने के लिए पीएसओ-2 की लगातार निगरानी जरूरी है। 
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