मप्र में 600 करोड़ के घोटाले को PAC ने सही मन

भोपाल। कंस्ट्रक्शन, खरीदी, सरकार को बिना बताए बैंक में पैसा रखने और गैर शासकीय संस्थाओं को अनधिकृत लाभ पहुंचाने वाले विभागों पर कैग द्वारा की गई गंभीर टिप्पणियों को विधानसभा की लोक लेखा समिति (पीएसी) ने भी सही माना है। इन विभागों में 600 करोड़ रुपयों से ज्यादा की वित्तीय अनियमितता व लापरवाही बरती गई है। मप्र विधानसभा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब पीएसी ने विभिन्न विभागों की 205 रिपोर्ट एक साथ पटल पर रखीं। इनमें से कई मामले तो 15 साल पुराने हैं।

यह भी चौंकाने वाला तथ्य है कि कैग की आपत्तियों के बाद भी विभाग कई सालों से पीएसी को जवाब नहीं दे रहे थे। हाल ही में पीएसी के अध्यक्ष महेंद्र सिंह कालूखेड़ा ने मुख्य सचिव को ‘रेड लेटर’ जारी किया तब विभागों के प्रमुख सचिव हरकत में आए और सभी आपत्तियों पर जवाब दे दिया। पीएसी की रिपोर्ट जनवरी के पहले सप्ताह में विभागों में कार्रवाई के लिए भेजी जाएंगी।

569 करोड़ की राशि में गड़बड़ी की संभावना
कैग ने कहा था कि मंडियों में पीडब्ल्यूडी द्वारा किए गए कार्यों पर 568.90 करोड़ रुपए खर्च हुआ, लेकिन ब्यौरा नहीं दिया गया। न ही बैंकों के रिकॉर्ड मिले और न ही ठेकेदार के आयकर, वाणिज्यिक कर, सुरक्षा निधि से जुड़े दस्तावेज। पीएसी ने माना कि इस राशि के गलत उपयोग से इनकार नहीं किया जा सकता। लिहाजा भविष्य में सारे प्रावधानों का पालन हो।

47 करोड़ वेतन-भत्तों के नाम पर गलत निकाले
पशुपालन विभाग में 2001-02 से 2005-06 के बीच कर्मचारियों के वेतन-भत्तों के नाम पर 46.72 करोड़ रुपए अनियमित तरीके से निकाले गए। यह राशि 1626 अस्थाई पदों के विरुद्ध निकाली गई। अफसरों ने बताया कि अस्थाई पदों की स्वीकृति का प्रस्ताव सरकार को भेजने के बाद ही पैसे निकाले गए। पीएसी ने दोषी लोगों को दंडित करने की सिफारिश की है।

गैस राहत अस्पतालों का सवा करोड़ निजी संस्था लेगी
भोपाल के इंदिरा गांधी महिला एवं बाल चिकित्सालय तथा कमला नेहरू अस्पताल में चिकित्सा उपकरण, फर्नीचर, किचन व लाउंड्री की खरीदी के लिए नोएडा की मेसर्स हॉस्पिटल सर्विसेज कंसलटेंसी कार्पोरेशन (एचएससीसी) ने एडवाइजर नियुक्त किया था। अनुबंध के मुताबिक उपकरणों की खरीद का पूरा भुगतान नोएडा स्थित इंडियन ओवरसीज बैंक को एफडी की शक्ल में करना था। इस पर मिलने वाला ब्याज एचएससीसी को मप्र सरकार को देना था। पीएसी ने जांच के बाद माना कि 7 साल से ब्याज व राशि शासन को नहीं दी गई। जो ब्याज समेत 1.24 करोड़ रुपए है। कैग ने पकड़ा न होता तो वसूली नहीं हो पाती। लिहाजा इस मामले में दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।

22 साल से नहीं हुई वसूली
वर्ष 1984-85 से 2006-07 के बीच विद्युत शुल्क में गड़बड़ी की वसूली के तीन मामलों में 41.34 लाख रुपए लेने थे। एक मामले में रीवा के तत्कालीन ईई से राशि वसूल ली गई, लेकिन बाकी मामले पेंडिंग हैं। पीएसी ने कहा कि शेष राशि वसूलकर बताई जाए।

जीएडी ने अफसरों को बचाया
पीएसी ने कहा कि प्रशासन अकादमी में सरकार को बिना बताए 25.88 करोड़ रुपए बैंक खातों में रखे गए। इंटरनल ऑडिट में 17.88 लाख रुपए का गबन सामने आया। इस मामले में दैनिक वेतन भोगी, रसोइये और वेटर पर कार्रवाई की गई, लेकिन उच्च अधिकारियों को संरक्षण दिया गया। गबन की राशि वसूली गई या नहीं पता नहीं। इसलिए दोषी अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो और राशि वसूली जाए।

सीएस को इसलिए दिया रेड लेटर
पंद्रह साल पुराने मामलों में प्रमुख सचिवों को लेटर, रिमाइंडर और यहां तक की विधानसभा के प्रमुख सचिव भगवानदेव इसरानी ने विभागीय पत्र तक दिए, लेकिन जवाब नहीं मिला। इसके बाद ही पीएसी ने मुख्य सचिव को ‘रेड लेटर’ जारी कर दिया, जिसमें 15 दिन की मोहलत दी गई। इसके बाद ही विभागों ने हर ऑडिट आपत्ति पर जवाब दिया। यदि जवाब फिर भी नहीं मिलता तो मुख्य सचिव को पीएसी के सामने खड़ा होना पड़ता। पीएसी का यह प्रमुख अधिकार है कि सरकार के विभागों से जवाब लेने के लिए वह ‘रेड लेटर’ दे सकता है।

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