जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश के जरिए राजधानी भोपाल निवासी एडीशनल डायरेक्टर लालाराम सिसोदिया की बर्खास्तगी के नोटिस पर रोक लगा दी। इसके साथ ही राज्य शासन, मानवाधिकार आयोग, प्रमुख सचिव अनुसूचित जाति जनजाति विभाग और लोकसेवा आयोग को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया गया है।
न्यायमूर्ति शील नागू की एकलपीठ में मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष अधिवक्ता डीके त्रिपाठी ने रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता पर फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के जरिए नौकरी हासिल करने का आरोप लगा। जिसकी जांच के लिए उच्च स्तरीय कमेटी गठित हुई। कमेटी ने जांच के बाद प्रमाण-पत्र फर्जी पाया। लिहाजा, विभाग ने बर्खास्तगी का नोटिस थमा दिया। इसी कार्रवाई के खिलाफ न्यायहित में हाईकोर्ट की शरण ली गई है।
क्या है पर्दे के पीछे
अधिवक्ता डीके त्रिपाठी ने कोर्ट को अवगत कराया कि याचिकाकर्ता जनसंपर्क विभाग के बाद मानवाधिकार आयोग में एडीशनल डायरेक्टर बतौर पदस्थ है। उनके प्रतिद्वंदी अधिकारी उसकी पदोन्नति रोककर अपनी पदोन्नति की खातिर फंसाने पर तुले हैं। इसीलिए भील और भिलाला जाति के बीच विवाद पैदा किया। यह जाति अनुसूचित जनजाति अंतर्गत आती है। भील-भिलाल दोनों समान हैं। इसके बावजूद याचिकाकर्ता को फंसाने के लिए फर्जी जाति प्रमाणपत्र का आरोप लगा दिया गया। वास्तव में याचिकाकर्ता अजजा में आता है।