भारत में गरीब और सरकारी जुमलेबाज़ी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत में गरीबी नापने के प्रचलित तरीकों पर भी सवाल उठाने वाले प्रोफेसर एंगस डीटॉन को इन सवालों पर ही नोबल पुरुस्कार मिल गया|  उनका शोध और हाल ही में आईं दो रिपोर्ट  भरत की गरीबी का जो चित्र उभरती है वः शर्मनाक  तो है ही सरकार के उन भाषणों की भी कलई खोलती है जो संसद में दिए गये हैं |

अर्थव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के समर्थक इस वर्ष के नोबल विजेता अर्थशास्त्री प्रोफेसर एंगस डीटॉन को मिले पुरस्कार के बहाने क्या हम नए सिरे से आर्थिक बढ़ोतरी एवं निरंतर जारी आर्थिक असमानता के अंतर्संबंध पर नए सिरे से गौर करेंगे?   

प्रोफेसर डीटॉन के अध्ययन, ‘जो भारत के वयस्कों एवं बच्चों की प्रचंड स्वास्थ्य समस्याओं के अस्तित्व' और आधे से अधिक भारतीय बच्चों के 'कुपोषित' होने की बात करते हैं, तो  हाल में प्रकाशित ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2015 तथा सितंबर में प्रकाशित ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट/ जीएनआर, दोनों दोनों में भारत में कुपोषण एवं भूख की बढ़ती स्थिति को दर्शाया है। इतना ही नहीं, विश्व बैंक के मुताबिक कुपोषित बच्चों की संख्या के मामले में भारत दुनिया में निचली कतारों में स्थित है और एक तरह से सब-सहारा अफ्रीकी मुल्कों के साथ होड़ करता दिखता है। इस चुनौती से निपटने के बजाय उससे बचने या टाल देने का रवैया ही नजर आता है। उदाहरण के तौर पर जुलाई, 2014 में वित्त मंत्री ने अपने बजटीय भाषण में इस चुनौती से जूझने के लिए ‘न्यूट्रिशन मिशन’ अर्थात पोषण मिशन की जरूरत को रेखांकित किया था, सितंबर में महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की तरफ से इस बात का एलान भी हुआ। मगर तबसे कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

विश्व बैंक के ताजा आकलन के हिसाब से भारत में अत्यधिक गरीबी वाली आबादी वर्ष 2015  में 9.6 प्रतिशत तक पहुंच गई है। वर्ष 2012 में यह आंकड़ा 12.8 प्रतिशत था। वर्ष 1990 में जबसे विश्व बैंक ने यह आंकड़े इकट्ठा करने शुरू किए हैं, तबसे पहली दफा ऐसी कमी दिखाई दी है। मगर बारीकी से देख, तो पता चलता है कि यह सब गिनती के तरीकों का मामला है। पहले अलग ढंग से गरीबी गिनी जाती थी, तो अब नए तरीके से गरीबी आंकी जा रही है। 


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