राकेश दुबे@प्रतिदिन। हाल में ही नेशनल सेंपल सर्वे आर्गनाइजेशन (NSSO) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में सिर्फ 22 प्रतिशत लोगों ने ही औपचारिक तौर पर वोकेशनल ट्रेनिंग ली है। इतना ही नहीं गांव के युवाओं की स्थिति तो और खराब है। वहां मात्र 1.3 प्रतिशत युवाओं के पास ही वोकेशनल ट्रेनिंग हैं। ‘भारत में शैक्षिक एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट के अनुसार देश में 15 से 59 साल तक के उम्र की कुल आबादी में मात्र 22 प्रतिशत ने ही औपचारिक तौर पर व्यवसायिक प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वहीं 0.9 प्रतिशत व्यक्ति इस सर्वे के समय प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे।
तकनीकी शिक्षा के मामले में एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार 2.4 प्रतिशत लोगों के पास ही तकनीकी डिग्री, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट है। यह अनुपात ग्रामीण क्षेत्र में 1.1 प्रतिशत जबकि शहरी क्षेत्र में 5.5 प्रतिशत है। एनएसएसओ के इस रिपोर्ट के आंकड़े न सिर्फ बेहद चौकानें वाले है, बल्कि बेहद चिंताजनक भी है! ये रिपोर्ट मोदी सरकार के “स्किल इंडिया” और “मेक इन इंडिया “ कार्यक्रमों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। एनएसएसओ की यह रिपोर्ट देश में “स्किल्ड “ युवाओं की भारी कमी को स्पष्ट रूप से दिखा रहा है। इसी वजह से देश के आधे से अधिक युवा बेरोजगार हैं।
रिपोर्ट में एक और चिंताजनक तथ्य यह है कि ग्रामीण क्षेत्र में जिन लोगों ने औपचारिक व्यवसायिक प्रशिक्षण लिया है, उनमें से मात्र 54.6 प्रतिशत को ही रोजगार मिला है जबकि 7.9 प्रतिशत बेरोजगार हैं। वहीं 37.5 प्रतिशत लोगों ने नौकरी पाने का प्रयास नहीं किया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “आईआईटी नहीं बल्कि आईटीआई है सदी की जरूरत “.उनकी इस बात का सीधा मतलब प्रशिक्षित युवा से था, जिसे अपनी आजीविका चलाने के लिए कुछ काम आता हो। क्योंकि आज देश में हालात ऐसे हैं कि आधे से ज्यादा पढ़े लिखे उच्च शिक्षित युवा बेरोजगार है, उन्हें कोई काम नहीं आता ,या आंशिक तौर पर जो काम आता है, उसमें वो ठीक से प्रशिक्षित नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है, लेकिन क्या देश में आईटीआई की दशा ठीक है? क्या वो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने के लिए जाने जाते हैं। इन कुछ सवालों के जवाब हमें खोजने होंगे साथ में इस बात की भी पड़ताल करनी होगी कि देश भर के 14000 आईटीआई का स्तर कैसा है? उनके शिक्षकों का स्तर कैसा है? उनके प्रशिक्षण के लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाए हैं? सच्चाई तो यह है कि देश में अधिकांश आईटीआई का स्तर ठीक नहीं है, साथ में अधिकांश आईटीआई के बच्चे और वहां के शिक्षक दोनों ही प्रशिक्षित नहीं हैं। आईटीआई अध्यापकों के उचित प्रशिक्षण के लिए अभी तक कोई ठोस सिस्टम विकसित ही नहीं हो पाया है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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