भारत में विदेशियों को नहीं मिल सकती किराए की कोख

नई दिल्ली। भारत सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय में एक हलफऩामा दाखिल कर कहा है कि भारत में विदेशी नागरिक किराये की कोख नहीं ले सकते हैं। अब तक भारत में किराए की कोख कानूनी है। सरकार के इस फैसले से भारत में सरोगेसी का कारोबार प्रभावित होगा। भारत में सरोगेसी का कारोबार 9 अरब डॉलर का है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है।

सरकार ने न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में कहा है कि किराये के कोख की सेवा सिर्फ भारतीय दंपतियों के लिये ही उपलब्ध है। हलफनामे के अनुसार, ‘सरकार किराये की कोख के व्यावसायीकरण का समर्थन नहीं करती है। कोई भी विदेशी भारत में किराये की कोख की सेवा नहीं ले सकता है। किराये की कोख सिर्फ भारतीय दंपतियों के लिये ही उपलब्ध होगी।’

सरोगेसी:
1. सरकार सरोगेसी (किराए की कोख) के व्यवसायीकरण के पक्ष में नहीं है।
2. सिर्फ़ परोपकार के उद्देश्य से ही किराए की कोख को अनुमति दी जाएगी वह भी सिर्फ़ ज़रूरतमंद भारतीय शादीशुदा निसंतान के लिए। इसके लिए कानून एक स्थापित एक संस्था से अनुमति लेनी होगी।
3. सरकार सरोगेसी की व्यावसायिक सेवा पर रोक लगाएगी और ऐसा करने वालों को सज़ा देगी।
4. सिर्फ़ भारतीय दंपत्तियों के लिए ही सरोगेसी की अनुमति होगी।
5. कोई विदेशी भारत में सरोगेसी की सेवाएं नहीं ले सकता।
6. सरोगेसी से जन्मे शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे की देखभाल का ज़िम्मा नहीं लेने वाले माता-पिता को सज़ा दी जाएगी।
7. इस कानून को तैयार करने में सरकार को कुछ समय लगेगा।

सरकार ने न्यायालय से कहा है कि उसने विदेशियों के लिये व्यावसायिक किराये की कोख की खातिर मानव भ्रूण आयात पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय किया है। हाल ही में, विदेशी व्यापार महानिदेशालय ने कृत्रिम गर्भाधान के लिये भारत में मानव भ्रूण आयात की अनुमति देने संबंधी अपनी 2013 की अधिसूचना वापस लेने का निर्णण किया था।

केन्द्र ने स्पष्ट किया कि अनुसंधान कार्य के लिये भ्रूण के आयात पर प्रतिबंध नहीं होगा। हलफनामे में कहा गया है कि किराये के कोख की सेवाओं के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध लगाने और इसे दंडित करने हेतु पर्याप्त प्रावधान किये जाएंगे।

इस बीच, पीठ ने किराये की कोख के मामले में न्यायालय में दाखिल होने वाले केन्द्र के संभावित जवाब का विवरण के बारे में उस खबर पर अप्रसन्नता व्यक्त की जिसमें कहा गया था कि सरकार दूसरे देशों के दंपत्तियों को भारत में किराये की मां के माध्यम से बच्चे की अनुमति नहीं देगी।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एन वी रमण ने शीर्ष अदालत में जवाब दाखिल होने से पहले एक अखबार में किराये की कोख के व्यावसायीकरण के बारे में सरकार के दृष्टिकोण का विवरण प्रकाशित होने पर नाराजगी जाहिर की।

शीर्ष अदालत में हलफनामा दाखिल होने से पहले ही इसके प्रमुख अंश एक अंग्रेजी समाचार पत्र में लीक होने को गंभीरता से लेते हुये न्यायाधीशों ने तल्ख शब्दों में कहा, ‘हमें आपसे कोई स्पष्टीकरण नहीं चाहिए। आप हलफनामा रजिस्ट्री में दाखिल कीजिये।’

पीठ ने सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार से कहा कि यह जवाब न्यायालय में दाखिल करने की बजाये इसे रजिस्ट्री में दाखिल कीजिये। इस समाचार के अनुसार, केन्द्र सरकार अपने हलफनामे में किराये की कोख के व्यावसायीकरण पर प्रतिबंध लगायेगी और दूसरे देशों के दंपतियों को किराये की कोख की मां के माध्यम से बच्चे प्राप्त करने की अनुमति नहीं देगी।

इससे पहले, न्यायालय ने किराये की कोख के व्यावसायीकरण को कानून के दायरे में लाने का निर्देश देते हुये मानव भ्रूण के कारोबार पर चिंता व्यक्त की और सरकार से कहा था कि मानव भ्रूण के आयात की नीति पर फिर से गौर किया जाये।

न्यायालय ने कहा था कि आप मानव भ्रूण के कारोबार की अनुमति दे रहे हैं जबकि किराये के कोख के व्यावसायीकरण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए परंतु देश में किसी कानूनी मान्यता के बगैर ही यह कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है।

केन्द्र ने 2013 में एक अधिसूचना जारी करके कृत्रिम गर्भाधान के लिये मानव भ्रूण के आयात की अनुमति दी थी। इस अधिसूचना ने विदेशी दंपतियों को जमा: फ्रोजेन: मानव भ्रूण भारत लाकर उसे किराये की कोख को देने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

इस मामले को लेकर वकील जयश्री वाड ने न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका में कहा गया है कि भारत एक तरह से ‘‘बच्चा पैदा करने वाली फैक्ट्री’’ बन गया गया है क्योंकि बड़ी संख्या में विदेशी दंपति किराये की कोख की तलाश में यहां आ रहे हैं।
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