राकेश दुबे@प्रतिदिन। द इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स' का कहना है कि वर्ष 2014 न्यूज मीडिया के लिए पाकिस्तान दुनिया का सबसे खतरनाक देश रहा। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, साल 2008 से 2014 के बीच पाकिस्तान में 34 पत्रकार मारे गए। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस आश्वासन के बावजूद कि पत्रकारों को भरपूर सुरक्षा दी जाएगी, उन पर हमले जारी हैं।
पिछले सप्ताह एक दिन के भीतर पत्रकारों व मीडियाकर्मियों पर तीन अलग-अलग हमले हुए, जिनमें दो मारे गए और दो बुरी तरह जख्मी हुए। कराची में जियो न्यूज के वैन पर हुए हमले में एक सैटेलाइट इंजीनियर मारा गया, जबकि वैन चालक बुरी तरह जख्मी हो गया।
इस वाकये के चंद घंटों के भीतर उसी शहर में जियो न्यूज के ही पूर्व पत्रकार आफताब आलम की हत्या कर दी गई। उधर पेशावर में पीटीवी से जुड़े पत्रकार को एक अज्ञात बंदूकधारी ने उड़ा दिया। साल 2008 में, जब से पाकिस्तान में लोकतंत्र की पुनर्बहाली हुई है, पाकिस्तानी मीडिया ने फौज और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के मानवाधिकार उल्लंघन के कारनामों का साहसिक खुलासा किया है। इसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ा है। जियो न्यूज ने जब यह खुलासा किया कि उसके स्टार एंकर हामिद मीर पर 2014 में हुए कातिलाना हमले के पीछे आईएसआई का हाथ था, तो अधिकारियों ने जियो न्यूज को बंद करने की धमकी तक दी।
पाकिस्तानी तालिबान जैसे आतंकी समूहों के निशाने पर भी पत्रकार हैं। अनेक पाकिस्तानी पत्रकार यह कबूल करते हैं कि नौकरी से निकाले जाने और मारे जाने के भय से वह काफी काट-छांटकर खबर लिखते हैं। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वादा किया है कि कराची को अपराधियों और आतंकी समूहों से आजाद कराने का काम चल रहा है और 'अगले दो साल के भीतर' यह शहर सुरक्षित हो जाएगा। शरीफ इससे बेहतर कर सकते हैं। दो साल का वक्त एक लंबा इंतजार है, और फिर केवल आतंकी ही प्रेस की आजादी के लिए खतरा नहीं हैं। जब तक पत्रकारों को धमकाने वाले फौजी अफसरों व एजेंसियों की जिम्मेदारी तय नहीं होती, तब तक शरीफ के वादे का कोई मतलब नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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