शिक्षा हर देश एवम् प्रदेश का महत्वपूर्ण अंग होता है अगर देश एवम् प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त हो तो उसे आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है.
परन्तु हमारी सरकारें न जाने क्यों इस और ध्यान नहीं दे पाती है शिक्षा की महत्वपूर्ण इकाई शिक्षक को ही आज महत्वहीन कर दिया है शिक्षक को संविदा ,अध्यापक,गुरूजी,अतिथि शिक्षक आदि नाम देकर सरकार ने शिक्षक के महत्वपूर्ण पद की गरिमा को तार तार किया है एवम् शिक्षक को अपमानित किया है।
चंद पैसे बचाने के चक्कर में सरकारें यह भी भूल गई की सम्पूर्ण तरक्की का आधार ही शिक्षा है इसके पतन होने पर विकास कैसे सम्भव है .मानसिक ओर आर्थिक रूप से प्रताड़ित अल्प वेतन भोगी नोजवानों से सरकार श्रेष्ठ शिक्षा की अपेक्षा करती है यह कैसे सम्भव है .यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार एक किसान अपने बैलों को चारा दाना बहुत ही कम देकर दिन भर कार्य की अपेक्षा रखता है ...
इससे बुरी स्थिति क्या ही सकती है की देश के भविष्य निर्माताओं का भविष्य ही आज सुरक्षित नही है आज तक उनका बीमा नहीं कर पाई सरकार जबकि मजदुर हम्माल गाय भैंस बकरी आदि सभी का बिमा है परन्तु अध्यापकों का नहीं क्यों ?
इससे यह तय होता की सरकारें शिक्षा को महत्वपूर्ण नही मानती है। जब कुंठित होकर अध्यापक आंदोलन की राह पकड़ता है तो सरकारें अध्यापकों को दोषी करार देती है .......
सरकार को चाहिए की अध्यापकों की समस्याओं का एक मुस्त समाधान करें .......
अशोक कुमार देवराले
प्रांतीय उपाध्यक्ष
म.प्र.शासकीय अध्यापक संगठन