भोपाल। व्यापमं में पीएमटी और डीमेट के जरिए अयोग्य अभ्यर्थियों को एमबीबीएस डॉक्टर बनाने वाले घोटाले की सनसनी के बीच एक नया मेडिकल-डेंटल रिजर्वेशन घोटाले प्रकाश में आया है। इस घोटाले में आरक्षित वर्ग की 50 प्रतिशत सीटों को बाला बाला बेच दिया गया। एक सीट के बदले 50 लाख तक वसूले गए।
जबलपुर स्थित मप्र हाईकोर्ट में प्रशासनिक न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन व जस्टिस एसके सेठ की डिवीजन बेंच ने इस सिलसिले में राज्य शासन, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा, संचालक चिकित्सा शिक्षा और एपीडीएमसी को नोटिस जारी कर जवाब-तलब कर लिया है। इसके लिए 4 सप्ताह का समय दिया गया है।
याचिकाकर्ता नरसिंहपुर निवासी रितु वर्मा की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी से आती है। उसने आरोप लगाया है कि मध्यप्रदेश के प्राइवेट डेंटल-मेडिकल कॉलेजेस में 2007 से 2015 तक एससी, एसटी व ओबीसी कैटेगिरी के छात्र-छात्राओं के लिए आरक्षित 50 फीसदी सीटों को बाला बाला बेच दिया गया। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया।
याचिका के अनुसार राज्य शासन 2007 में निजी विश्वविद्यालय अधिनियम लाया था, जिसके सेक्शन-8 में प्राइवेट डेंटल-मेडिकल कॉलेजेस में एससी, एसटी व ओबीसी के आवेदकों को रिजर्वेशन दिए जाने की व्यवस्था दी गई थी। यह नियम 2007 से ही लागू कर दिया गया था। इसके बावजूद 2015 तक 7 साल के दौरान राज्य के निजी डेंटल-मेडिकल कॉलेजेस द्वारा आरक्षित वर्गों के आवेदकों को एडमिशन नहीं दिया गया।
50-50 लाख में बेची गई सीटें
कायदे से स्टेट कोटा की 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जानी चाहिए थीं, लेकिन ऐसा न करते हुए सीटें 50-50 लाख रुपए में बेच दी गईं। राज्य शासन की जिम्मेदारी बनती थी कि वह इस भर्राशाही पर अंकुश लगाती। इसके बावजूद मिली-भगत जारी रही। यदि पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच हो तो व्यापमं जैसा ही रिजर्वेशन घोटाला सतह पर आ जाएगा।