महाकाल के महाभोग पर टंटा शुरू

उज्जैन। महाकाल को रक्षाबंधन पर इस बार सवा लाख लड्डुओं का महाभोग लगेगा या नहीं, इस पर संशय खड़ा हो गया है। दरअसल परंपरागत रूप से पुजारी भोग का सारा प्रबंध करते हैं, मगर इस बार मंदिर प्रशासन ने भस्मारती में कटोरे पर रोक लगा दी है। पुजारियों का कहना है कि इससे महाभोग सहित अन्य आयोजनों के लिए खर्च जुटाना मुश्किल हो गया है। कलेक्टर से मांग की गई है कि या तो मंदिर प्रशासन महाभोग की व्यवस्था जुटाए या फिर कटोरे पर लगी रोक हटाए। 

श्रावणी पूर्णिमा पर राजाधिराज को महाभोग लगाने की परंपरा रही है। पुजारियों द्वारा तड़के भस्मारती में भोग लगाया जाता है। पुजारी भक्तों के सहयोग तथा भस्मारती के दौरान घुमाए जाने वाले कटोरे में आने वाली न्योछावर की राशि से यह भोग लगाते हैं। पुजारियों का कहना है कि महाभोग के लिए पहले भक्तों से सहयोग लिया जाता था। इसके लिए मंदिर में भेंट काउंटर भी लगता था। मंदिर प्रशासन भक्तों से सहयोग लेने पर पहले ही रोक लगा चुका है और अब भस्मारती में कटोरा घुमाने पर भी रोक लगा दी है। ऐसे में सालों पुरानी परंपरा के खंडित होने का अंदेशा उत्पन्न् हो गया है। 

मंदिर प्रशासन ने हाथ खड़े किए मंदिर प्रशासन ने भी हाथ खड़े कर दिए हैं। मंदिर प्रशासक आरती तिवारी का कहना है कि भोग लगाने की परंपरा पुजारियों की है। उन्हें इसका पालन करना चाहिए। मामले में मंदिर समिति ने फिलहाल कोई भी निर्णय नहीं लिया है। सालों से चली आ रही परंपरा मान्यता है कि श्रावणी पूर्णिमा पर महाकाल को महाभोग लगाने की परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। कालांतर में इसका स्वरूप विस्तृत होता गया। बीते 35 सालों से भगवान को सवा लाख लड्डुओं का महाभोग लगाया जा रहा है। तड़के भस्मारती में पुजारी बाबा महाकाल को राखी बांध कर महाभोग लगाते हैं। इसलिए महत्व पं.राजेश पुजारी ने बताया महाकाल के महाभोग का धर्म परंपरा में बड़ा महत्व है। जो भक्त श्रावण मास में उपवास रखते हैं, वे श्रावणी पूर्णिमा पर महाभोग का प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही उपवास खोलते हैं। इस दिन मंदिर में बड़ी तादाद में स्थानीय श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। 

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