लंदन। ब्रिटिश शोधकर्ताओं का मानना है कि धूपबत्ती या अगरबत्ती से निकलने वाला धुआं सिगरेट से निकलने वाले धुएं से ज्यादा जहरीला होता है और केंसर का कारण बन सकता है।
शोधकर्ताओं ने सिगरेट के धुंए की अगरबत्ती के धुंए से तुलना की और पाया कि अगरबत्ती का धुंआ कोशिकाओं में जेनेटिक म्यूटेशन करता है। इससे कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव होता है, जिससे कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस अध्ययन के बाद धूप उत्पादों का मूल्यांकन किया जाएगा।
ब्रिटिश लंग फाउंडेशन के मेडिकल एडवाइजर डॉक्टर निक रॉबिन्सन ने अध्ययन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि धूप के धुंए सहित कई प्रकार के धुंए जहरीले हो सकते हैं। हालांकि, उन्होंने बताया कि यह शोध छोटे आकार में चूहों पर किया गया था। ऐसे में स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में कोई ठोस निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता।
शोध के नतीजों के आधार पर फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए यह अच्छा होगा कि वह धूप के धुंए से बचें।
बांस से बनी अगरबत्ती जलने के बाद हवा में पार्टिकल्स रिलीज करती है, जो सांस के साथ फेफडों में जाकर अटक जाते हैं।
अभी तक धूपबत्ती को वायु प्रदूषण के स्रोत के रूप में मानते हुए अधिक शोधकार्य नहीं हुआ था।
अगरबत्ती और धूपबत्ती को फेफड़ों के कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और बच्चों के ल्यूकेमिया के विकास के साथ जोड़ा जा रहा है।
साउथ चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के डॉक्टर रॉग झोऊ के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने अगरबत्ती के धुंए और सिगरेट के धुंए का इंसानी कोशिकाओं पर पड़ने वाले असर का परीक्षण करने का फैसला किया। इसके लिए उन्होंने दो तरह की धूप का परीक्षण किया। दोनों में अगरवुड और सैंडलवुड था, जो आमतौर पर घरों में जलाई जाने वाली अगरबत्ितयों में होता है।
उन्होंने चीनी हैम्सटर (चूहे जैसा एक जीव) की अंडाशय की कोशिकाओं पर धूप के धुंए और सिगरेट के धुंए का प्रभाव जानने के लिए प्रयोग किया। अध्ययन में परीक्षण के बाद पाया गया कि सिगरेट के धुंए की तुलना में धूप के धुंए के कारण वे अधिक म्यूटाजेनिक साइटोटोक्सिक और जीनोटॉक्िसक हो गए थे।
इसका अर्थ यह है कि धूपबत्ती में ऐसी केमिकल प्रॉपर्टीज होती हैं, जो जेनेटिक मटीरियल जैसे कोशिकाओं के डीएनए को बदल सकती हैं। इसके कारण म्यूटेशन यानी कोशिकाओं में बदलाव होता है। म्यूटाजेनिक साइटोटोक्सिक और जीनोटॉक्िसक का संबंध कैंसर के विकसित होने से है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि अगरबत्ती के धुंए में अल्ट्राफाइन और फाइन पार्टिकल्स मौजूद थे। ये सांस के साथ आसानी से शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं।