मप्र में युवा राजनीति से शिवराज सिंह को डर क्यों लगता है

भोपाल। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास कुछ ऐसी शक्तियां होतीं कि घोषणा होते ही अमल शुरू हो जाता तो कितना अच्छा होता, क्योंकि कई सारी घोषणाएं ऐसी हैं जो तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कर तो दी गईं, लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया। मप्र युवा आयोग का गठन इन्हीं घोषणाओं में से एक है। 

वर्षों गुजर, इंतजार में आखें पथरा गईं परंतु मप्र युवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति आज तक नहीं हो पाई। प्रदेश में युवा आयोग का गठन सत्ताधारी दल भाजपा के वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में मुद्दा बना था। घोषणा के बाद कैबिनेट से भी मुहर लग गई और आयोग के नियम कायदे भी बन गए, लेकिन अब तक इसमें न तो अध्यक्ष और न ही सदस्य की नियुक्ति की गई। 

आयोग के अध्यक्ष पद को लेकर भाजपा में एक दर्जन से अधिक दावेदार हो गए थे। इनमें से अधिकतर नेता पुत्र थे, इनमें मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ, गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक, कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश, कमल पटेल के पुत्र संदीप, प्रेमनारायण ठाकुर के पुत्र उत्तम, सांसद सुमित्रा महाजन के बेटे मंदार महाजन शामिल थे। 

बावजूद इसके शिवराज सिंह चौहान युवा आयोग में नियुक्तियां नहीं कर पाए। छात्रसंघ चुनावों को लेकर भी शिवराज सिंह का रवैया कुछ ऐसा ही है। जब शिवराज सिंह मुख्यमंत्री नहीं थे तब छात्रसंघ चुनावों की बड़ी वकालत किया करते थे। अब मुख्यमंत्री हैं तो चुनाव कराने का नाम ही नहीं लेते। पता नहीं युवा राजनीति से शिवराज सिंह को डर क्यों लगता है। 
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