भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रश्नकाल, शून्यकाल, ध्यानाकर्षण जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियों को हंगामे से परे रखने के लिए अब सदन की आचार संहिता बनाई जाएगी। 15 अगस्त के बाद विधानसभा की सभी समितियों के सभापति और दलों के नेताओं के साथ इस विषय पर बैठक होगी।
प्रदेश की 14वीं विधानसभा की अधिकांश बैठकें हंगामे की भेंट चढ़ी हैं। व्यापमं घोटाला इसका प्रमुख कारण रहा है। हंगामे के चलते मानसून सत्र में प्रश्नकाल तक शुरू नहीं हो सका। जिन सदस्यों के सवाल आने थे, उन्होंने सत्र समाप्त होने के बाद अध्यक्ष डॉ.सीतासरन शर्मा से मिलकर जरूरी कार्यवाहियों के दौरान हंगामा न हो, इसका रास्ता निकालने की गुजारिश की है।
डॉ.शर्मा ने बताया कि सदन में हंगामा करने की प्रवृत्ति मध्यप्रदेश से लेकर लोकसभा-राज्यसभा तक पैर पसार रही है। लोकतंत्र के लिए ये शुभ संकेत नहीं है, इसलिए मिल-बैठकर रास्ता निकालना होगा। इसकी शुरुआत मध्यप्रदेश विधानसभा से की जा सकती है। विपक्ष को अपनी बात उठाने का पूरा अधिकार है पर किसी के विशेषाधिकार की कीमत पर नहीं। दरअसल, सवालकर्ता को प्रश्न पूछने का विशेषाधिकार है, जो हंगामे से बाधित होता है।
हंगामे को लेकर सत्ता और विपक्ष के अपने-अपने तर्क हैं पर इसे यूं ही चलने नहीं दिया जा सकता है। यही वजह है कि सभापतियों के साथ सत्ता और विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाने का निर्णय लिया गया है। कुछ समितियों के सभापतियों का 15 अगस्त तक मनोनयन हो जाएगा। इसके बाद गैरदलीय आधार पर बैठक होगी। इसमें जो रास्ता निकलेगा, उससे संसद को भी अवगत कराया जाएगा।
चार माह बाद मिलेंगे जवाब
विधानसभा सचिवालय ने बताया कि जिन तीन हजार सवालों के जवाब विधायकों को मानसून सत्र में मिल जाते, वे अब तीन माह बाद शीतकालीन सत्र में मिलेंगे। समय से पहले सत्र स्थगित होने से विभागों में भी जवाब देने को लेकर सुस्ती आना स्वभाविक है। मानसून सत्र में विधायकों ने सवा तीन हजार से ज्यादा सवाल लगाए थे।