नाले के बीच टापू पर पेड़ के नीचे लगता है एक स्कूल

अनिल मालवीय/धीरज राठौर/इछावर/ब्रिजिस नगर। चारों तरफ नाला, बीच में टापू और यहां एक पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ते हैं बच्चे। बारिश के दौरान नाले की बाढ़ में बच्चे घिर जाते हैं। ये बच्चे पास के ही एक आदिवासी के टप्पर में बैठकर नाले की बाढ़ उतरने का इंतजार करते हैं। इस टप्पर में भी बारिश का पानी टपकता, इसमें ये बच्चे गीले हो जाते हैं।

ऐसा ही प्राइमरी स्कूल है विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के संसदीय क्षेत्र और प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के गृह जिला सीहोर के इछावर विकासखंड के आदिवासी बाहुल्य ग्राम भूरी घाटी का। गांव के लोग अधिकारियों को कई बार समस्या बता चुके। क्षेत्र के स्कूलों की हालत को लेकर क्षेत्रीय विधायक भी विधानसभा में सरकार से सवाल कर चुके लेकिन किसी ने भी स्कूलों के भवन बनवाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

दो शिक्षक, कुर्सी एक
राजधानी भोपाल से महज सौ किमी दूर इछावर विकासखंड की ग्राम पंचायत बावड़िया चोर अंतर्गत आने वाले भूरी घाटी में वर्ष 2010 में प्राइमरी स्कूल खोला गया था। वर्तमान में इस स्कूल में 35 बच्चे पढ़ते हैं। यहां दो शिक्षक है लेकिन कुर्सी सिर्फ एक है, जब एक शिक्षक पढ़ाते हैं तो दूसरा शिक्षक खड़े रहता है। इस स्कूल में टाटपट्टी, ब्लेक बोर्ड, रजिस्टर व अन्य दस्तावेज रखने के इंतजाम नहीं हैं।

शिक्षक अमरसिंह चौहान बताते हैं कि बारिश के दौरान आकाशीय बिजली गिरने का खतरा रहता है, स्कूल के दस्तावेज और बच्चों की पुस्तक-कापियां भीग जाती हैं। जमीन गीली होने पर बच्चों को पास के ही एक आदिवासी के टप्पर में बैठाकर पढ़ाया जाता है। लेकिन टप्पर में भी बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होने के साथ बारिश का पानी टप्पर के छप्पर से टपकता है।

नाले का पानी पीते हैं बच्चे
सरकार द्वारा सर्व शिक्षा अभियान के तहत स्कूलों में शौचालय बनवाए जा रहे हैं, पीने के पानी के लिए हैंडपंप लगाए जा रहे हैं। लेकिन इस गांव के स्कूल में बच्चों के लिए पीने के पानी का इंतजाम तक नहीं है। बच्चे नाले का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते हैं।

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