व्यापमं में नया खुलासा: प्रवेश पत्र पर भी होती थी साल्वर की फोटो

भोपाल। व्यापमं घोटाले में एक नया खुलासा हुआ है। इस घोटाले का पता निचले स्तर के कर्मचारियों को ना चल सके इसलिए प्रवेश पत्र पर अभ्यर्थी नहीं बल्कि उसकी जगह पर परीक्षा देने आए साल्वर की फोटो लगाई जाती थी। इसके लिए फोटो एडीटर्स की टीम काम करती थी जो रातों रात प्रवेश पत्र बदल दिया करती थी।

एक अंग्रेजी अखबार ने दावा किया है कि यह सारा खेल मेडिकल कॉलेज संचालकों की देखरेख में चलता था और इसका खुलासा खुद एसटीएफ के एक अधिकारी ने नाम पर छापने की शर्त पर किया है।

गौरतलब है कि इंदौर के एक मेडिकल कॉलेज में तीन छात्रों की धोखाधड़ी से दाखिले की जांच कर रही स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने कथित तौर पर वास्तविक और फर्जी उम्मीदवार का पता करने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार के 40,000 से अधिक छात्रों की तस्वीरों को स्कैन किया था। ऐसा करने की जरूरत एसटीएफ को इसलिए पड़ी क्यूंकि परीक्षा टिकट को फोटोशॉप के द्वारा एडिट किया गया था। टिकट के ऊपरी हिस्से पर फर्जी उम्मीदवार और निचले हिस्से पर वास्तविक उम्मीदवार की फोटो थी।

छात्रों को फर्जी तरीके से एडमिशन दिलाने का यह एक खास तरीका था। इन एडमिशनों को अंजाम देने के लिए एक विस्तृत योजना बनाई गई थी। इस खुलासे ये यह जाहिर होता है कि व्यापमं घोटाले के पीछे लाखों रुपये के लेनदेन के साथ हेराफरी, सावधानीपूर्वक बनाई गई योजना, प्रौद्योगिकी का उपयोग और एक पूरा आपराधिक समूह काम कर रहा था।

अंग्रेजी अखबार ने दावा किया है उसे ये सारी जानकारी एक ऐसे व्यक्ति से मिली है, जो घोटाले के आरोपी के संपर्क में था। इस शख्स के अनुसार जो छात्र एडमिशन चाहते थे, उन्हें एडमिशन फार्म के लिए सिर्फ अपनी फोटो और सिगनेचर उपलब्ध करानी होती थी। बाकी सारा काम एक पूरा गैंग किया करता था। एडमिशन की कीमत 5 से 50 लाख रुपये के बीच थी। यह कीमत कॉलेज की डिमांड के आधार पर तय होती थी। आरक्षित वर्ग के छात्र अधिकतर बिचौलियों से संपर्क किया करते थे।

साल्वरों की सेटिंग यूपी बिहार से
फर्जी उम्मीदवार का चयन उत्तर प्रदेश और बिहार से किया जाता था। यूपी और बिहार में चल रहे कोचिंग इंस्ट्टीटयूट, जहां स्टूडेंट ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट के लिए तैयारी कर रहे होते थे, उन्हें गैंग के लोग निशाना बनाया करते थे। ये वो छात्र थे जो आर्थिक रूप से कमजोर थे। इनक बच्चों के पिता आमतौर पर मजदूर हुआ करते थे और बच्चों की फीस भर पाने सक्षम नहीं थे। उनके हालातों का फयदा उठाकर गैंग के लोग उन्हें साल्वर के तौर पर इस्तेमाल करते थे।

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