भोपाल। राज्यपाल रामनरेश यादव का नाम एफआईआर से हटाने के आदेश के बाद एसटीएफ की काफी किरकिरी हो रही है। किरकिरी इसलिए कि जब संविधान में राज्यपाल को पूर्ण-विशेषाधिकार का दर्जा प्राप्त है तो फिर जरूरत ही क्या थी इस बवंडर को उठान की। एक नासमझ बाबू की तरह काम की उम्मीद एसटीएफ से तो कतई नहीं की जा सकती।
यहां बता दें कि राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर को चेलेंज करने के लिए देश के प्रख्यात वकील रामजेठमलानी जबलपुर हाईकोर्ट मे उपस्थित हुए थे। उन्होंने कोई रॉकेट साइंस नहीं किया बस भारत के संविधान में लिखीं कुछ लाइनें पेश कीं और उसके बाद हाईकोर्ट ने माना कि अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के संबंध में अमेरिकन सुप्रीम कोर्ट और यूनियन कार्बाइड के मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट के 5 न्यायाधीशों की पूर्व संवैधानिक बेंच ने जो ऐतिहासिक निर्णय सुनाए थे, उनके तहत संविधान के अनुच्छेद- 361 (2) में राष्ट्रपति व राज्यपाल को जो विशेषाधिकार दिया गया है, वह पूर्ण-विशेषाधिकार है। लिहाजा, उसका कोई अपवाद नहीं हो सकता। इसीलिए राज्यपाल के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर रद्द किए जाने योग्य है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि संविधान के अनुच्छेद- 361 (2) में साफतौर पर 'जो कुछ भी हो (वॉट-सो-एवर) शब्द लिखा गया है।
सवाल यह उठता है कि एसटीएफ जो विशेषज्ञों की एक टीम मानी जाती है, जिसके शुरूआत में 'स्पेशल' का उपयोग किया गया है, को क्या एफआईआर दर्ज करने से पहले मालूम नहीं था कि राज्यपाल को विशेषाधिकार का दर्जा प्राप्त होता है। संविधान में 'वॉट-सो-एवर' लिखा हुआ है। यदि मालमू नहीं भी था तो क्या उनके पास और मप्र शासन के पास इस स्तर के विधि विशेषज्ञ भी नहीं हैं जो इस गलती को होने से पहले भी सचेत कर पाते।
सवाल यह है कि जब भारत के संविधान का पूरा ज्ञान कानून की रक्षा करने वाली स्पेशल टीमों को ही नहीं है तो क्या उम्मीद की जाए कि उनकी कार्रवाई विधिसम्मत और न्याय के लिए चल रही है। कहीं यह मीडिया ट्रायल में खुद को हीरो साबित करने की तिकड़मबाजी तो नहीं।