ग्वालियर। स्कूलों में किताबों की कालाबाजारी का मामला अंतत: हाईकोर्ट पहुंच ही गया। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को 7 दिन के भीतर अभ्यावेदन प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं, साथ ही निर्धारित किया है कि शासन 45 दिन में इसका निराकरण करें।
क्या है समस्या
समस्या यह है कि तमाम प्राइवेट स्कूल अलग अलग प्रकाशकों की किताबें अपने स्कूलों में लागू करते हैं। उदाहरण के लिए कक्षा 3 की जो किताब शहर के एक स्कूल में पढ़ाई जाती है वो दूसरे स्कूल में नहीं होती, वहां प्रकाशक समेत पूरी किताब ही बदल जाती है। इससे होता यह है कि खुले बाजार में इनकी उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती। पेरेंट्स को मजबूरन एक निर्धारित दुकान से ही किताबें खरीदनी पड़तीं हैं। आरोप है कि इन किताबों पर स्कूल संचालकों को भारी कमीशन मिलता है। कक्षा 4 के लिए एनसीईआरटी की किताबें मात्र 400 रुपए की आतीं हैं परंतु प्रकाशक बदल जाने ने स्कूलों में इसी तरह की किताबों के लिए 4000 रुपए तक चुकाने पड़ते हैं।
हाईकोर्ट का आदेश
स्कूल की किताबों में एकरूपता लाने के लिए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को आदेश दिया है कि वे 7 दिन में अपना एक अभ्यावेदन शासन को सौंपें। शासन को इस अभ्यावेदन को 45 दिन में निराकरण करना होगा। याचिका में सीबीएसई के स्कूल व एमपी बोर्ड के स्कूलों की किताबों में एकरूपता लाने की मांग गई थी।
विजय तिवारी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में बताया गया कि सीबीएसई ने वर्ष 2007 व 2008 में आदेश जारी किया था। इस आदेश में स्कूलों को एनसीआरटी की किताबों को ही पढ़ाया जाए, लेकिन स्कूल ऐसा नहीं कर रहे हैं। स्कूल में अलग-अलग प्रकाशन की किताबें चल रहीं हैं, जिससे छात्रों को पढ़ने में दिक्कत हो रही है।
दूसरी ओर मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग की किताबों में भी अंतर है। स्कूल गाइड लाइन का पालन नहीं कर रहे हैं। याचिका में दोनों बोर्डों के स्कूलों की किताबों में एकरूपता की मांग की गई। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिकाकर्ता को आदेश दिया कि वे अपना अभ्यावेदन शासन को सौंपे और शासन उनके अभ्यावेदन पर 45 दिन में फैसला ले।