ग्वालियर। ग्वालियर अंचल में अलग-अलग मार्गों पर चल रही प्रायवेट यात्री बसों में न तो सुरक्षा के प्रबंध हैं न ही अन्य सुविधाएं। करीब 25 यात्री बसों की पड़ताल करने के बाद किसी में भी इमरजेंसी गेट नहीं मिला। अधिकांष स्कूली बसों में भी इमरजेंसी गेट नही हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों डबरा, दतिया, घाटीगांव, शिवपुरी, मुरैना, भितरवार, चीनोर, पिछोर, गोराघाट, करैरा, खनियाधाना आदि रोडों पर चलने वाली प्रायवेट बसों में और बुरी हालत है, इमरजेंसी गेट के स्थान पर सीटें लगा दी गई हैं। रात्रि में चलने वाली वीडियोकोच बसों में स्लीपर सीटें तो हैं पर इमरजेंसी गेट बंद है या है ही नहीं। दूसरा गेट भी अधिकांश बसों में नही हैं।
हाल ही में प्रदेश में बस का गेट न खुलने पर बस पलटने पर 50 यात्रियों की आग से मौत के बाद हालांकि परिवहन विभाग नींद में से जागा है, लेकिन बस मालिक परिवहन विभाग पर हावी हैं, तभी तो इतने दिनों बाद भी इमरजेंसी गेट की व्यवस्था और दूसरे गेट की व्यवस्था नहीं हो पाई। अधिकांश रात्रि कालीन वीडियोकोच बसों की थानों में सेटिंग होने के कारण निरीक्षण-परीक्षण नहीं होता अधिकारियों, नेताओं की सवारियां वीडियोकोच वाले सेवा भाव से ले जाते हैं, इसीलिये उन्हें यात्रियों की जान से खिलवाड़ करने की पूरी छूट है।
50-52 सीटर बस में 70 से 80 सवारियां भेड़, बकरियों की तरह भरी जाती हैं आधी-आबादी महिलाओं के लिये एक भी सीट आरक्षित नहीं होती यही हाल विकलांग, वृद्ध और सीनियर तथा अन्य वीआईपी के लिये भी सीटें आरक्षित नही होती। कंडक्टर ड्रायवर मनमाने ढंग से गाड़ी चलाते हैं। कंडक्टर महिला सवारियों के सामने यात्रियों से मां-बहिन की गालियां देकर बात करते हैं तथा दुव्र्यवहार करते हैं, किराया मनमाना बसूला जाता है। यह सब परिवहन अधिकारियों की सांठगांठ से होता है। नाममात्र के लिये साल-छै महीने में 2-4 वाहन पकड़कर कार्यवाही का दिखावा किया जाता है।
पूरे मप्र में सरकारी बसें बंद हैं, जबकि आसपास के राजस्थान, महाराष्ट्र तथा अन्य प्रदेशों में सरकारी बसें चालू हैं। प्रदेश की 6 करोड़ से अधिक जनता को प्रायवेट बस चालकों द्वारा विभिन्न तरह से लूटा एवं प्रताड़ित किया जा रहा है। इस पर सरकार का ध्यान नही हैं। पूरे प्रदेष की सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री एक राज्य परिवहन निगम के संचालन के लिये कोई योग्य अधिकारी नहीं ढूंढ़ पा रहे हैं, जो अपने आप में आष्चर्यजनक है। प्रदेश में बस स्टेंड हैं, जिन पर माफिया नजर अड़ाये हुये हैं, प्रायवेट बसों की हालत खराब है।