सेंट्रल डेस्क/भोपाल समाचार। यह आजाद हिन्दुस्तान का पहला घोटाला है जिसमें भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। यह चौंकाने वाला खुलासा साउथ ब्लॉक में ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के तहत छिपाकर रखी गईं फाइलों के सार्वजनिक होने के बाद हुआ है। इस घोटाले में भारत की मां-बहनों के उन सोने के गहनों का गबन किया गया जो उन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस को दिए थे। गबन के मुख्यआरोपी राममूर्ति और अय्यर हैं जबकि पं. जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें संरक्षण दिया एवं जानकारी मिलने के बाद भी जांच तक नहीं की।
उजागर हुई इस फाइल के मुताबिक, नेताजी ने आजाद हिंद फौज को खड़ा करने के लिए आम लोगों से पैसे लेकर खजाना तैयार किया था। यह वह सोना था, जिसे भारत की मां-बहनों ने आजादी की लड़ाई के लिए नेताजी को दान में दिया था। नेताजी के निजी सहायक कुंदन सिंह के हवाले से बताया गया कि हिटलर ने भी स्टील के चार संदूकों में गहने भरकर नेताजी को गिफ्ट किया था।
उस खजाने में 65 किलो से ज्यादा सोना था। कुछ तो बताते हैं कि तकरीबन 100 किलो सोना नेताजी को दान में मिला था। नेताजी ने इस खजाने का बड़ा हिस्सा साईगान में आजाद हिंद फौज का बैंक बनाने के लिए रखा था। अब सीक्रेट फाइलों से यह पता चला है कि उस खजाने को जब लूटा जा रहा था, तब भारत की नेहरू सरकार चुपचाप देख रही थी।
दस्तावेज बताते हैं कि प्रधानमंत्री नेहरू को जापान सरकार ने बार-बार बताया कि नेताजी का खजाना उन्हीं के करीबी लूट रहे हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू ने कोई कार्रवाई नहीं की। उलटे जिस शख्स पर खजाना लूटने का आरोप था, उसी की चिट्ठी संसद में पढ़ी गई, जिसमें उसने नेताजी की मौत की पुष्टि की थी। दस्तावेजों के मुताबिक नेताजी के करीबी ए. अय्यर और एम. रामामूर्ति ही खजाना लूटने के आरोपी हैं। उस खजाने की कीमत आज करोड़ों में होती।
दस्तावेजों के मुताबिक, तोक्यो में पहले भारतीय संपर्क मिशन के प्रमुख बेनेगल रामाराव ने भारत सरकार को बताया कि राममूर्ति ने नेताजी के पैसों और उनके कीमती सामान का गबन किया। इसके बाद मिशन प्रमुख बने के.के. चेत्तूर ने लिखा कि राममूर्ति और अय्यर का संबंध नेताजी के रहस्यमय ढंग से गायब खजाने से जरूर है। तोक्यों में भारतीय राजदूत ए.के. डार ने 1955 में लिखा कि सरकार को इस बात की जांच करानी चाहिए कि इस खजाने को चुराने वाले कौन हैं।
दस्तावेज बताते हैं कि इस दिशा में भारत सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। आलम यह है कि 65 किलो से ज्यादा सोने में से सिर्फ 11 किलो सोना ही भारत लौट सका। 1952 में चार पैकिटों में आजाद हिंद फौज का 11 किलो सोना वापस आ सका। यह ताइवान हादसे के बाद जमा किया गया था। जले हुए बैग में यह खजाना दिल्ली के नैशनल म्यूजियम में 62 साल से पड़ा है। इस पूरे मामले के सामने आने के बाद इसे आजाद भारत में सरकार का पहला गड़बड़झाला माना जा रहा है।