भोपाल। यूपी में इन दिनों बिजली बिल घोटाले की गूंज सुनाई दे रही है। 50 हजार रुपए का बिल 10 हजार में सेट कर दिया जाता था। रसीद 50 हजार की ही बनती और विभाग के खाते में जमा होते 5000 रुपए मात्र।
ऐसे होता है घोटाला
दरअसल यह तकनीकी स्तर पर किए जाने वाला घोटाला है। मीटर रीडिंग वाला आपकी रीडिंग ले जाता है। साफ्टवेयर में फीड होते ही बिल जनरेट हो जाता है। आप आपको बस इतना करना है कि बिल निर्धारित तारीख तक नहीं चुकाना। इस एक महीने में सारी आडिट हो चुकी होती है। साफ्टवेयर के एडमिन राइट्स अफसरों के ही हाथ में होते हैं। बिल की रकम जब ज्यादा हो जाए तो समझौते की बात शुरू होती है। 50 हजार रुपए के बिल के एवज में मात्र 25 हजार रुपए ही वसूले जाते हैं। इसमें से भी 15000 आपस में बांट लिए जाते हैं शेष 10 हजार रुपए बिजली कंपनी के अकाउंट में जमा करा दिए जाते हैं, लेकिन इससे पहले आपका बिल एडिट कर दिया जाता है। इस तरह आपके बिल में बकाया भी दिखाई नहीं देता। चपत केवल बिजली कंपनी को लगती है।
जैसा घोटाला यूपी में हुआ, ठीक वैसा ही बिलिंग सिस्टम मप्र में भी है। यहां भी ऐसा हो सकता है और कौन जाने हो भी रहा हो। जिस तरह मुंबई में धमाका होने पर देशभर में अलर्ट जारी होते हैं, ठीक उसी तरह यहां भी एहतियातन इस मामले की जांच मप्र में करा लेनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि वो किसी आरटीआई कार्यकर्ता के खुलासे का इंतजार ना करे।