दवा माफिया ने कराई है डॉ. खरे की हत्या!

भोपाल। यह खुला आराम इन दिनों मप्र के आसमान में गूंज रहा है। यूं तो डॉ. खरे की मौत एक रोड एक्सीडेंट में हुई है परंतु कहा जा रहा है कि यह एक्सीडेंट सामान्य रोड एक्सीडेंट नहीं था बल्कि प्लांड था और इसे हत्या कहा जाना चाहिए।

मध्यप्रदेश में अमानक व नकली दवाओं की आपूर्ति का खुलासा कर जनता के हित की लड़ाई लड़ने वाले 'व्हिसल ब्लोअर' राज्य चिकित्सक व अधिकारी संघ के अध्यक्ष डॉ. अजय खरे की सड़क हादसे में मौत सवालों के घेरे में है। हर तरफ से डॉ. खरे की मौत की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग उठ रही है।

डॉ. खरे ने राज्य में विभिन्न कंपनियों द्वारा सरकारी अस्पतालों से लेकर आम दुकानों पर बिकने वाली दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे और सूचना के अधिकार के जरिए सामने आए तथ्यों ने राज्य में सनसनी फैला दी थी। इस खुलासे के बाद दवा कंपनियों से लेकर राज्य के स्वास्थ्य महकमे तक पर प्रश्नचिह्न् लग गया था।

डॉ. खरे ने अपने सहयोगियों की मदद से जो जानकारी हासिल की थी, वह चौंकाने वाली थी। उससे पता चला था कि राज्य में ऐसी 147 दवाओं की आपूर्ति हुई है, जो राज्य की प्रयोगशाला में जांच के बाद अमानक पाई गई हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि राज्य की दवा खरीद नीति में साफ कहा गया है कि दवा की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही खरीद की जाए, मगर राज्य में 147 दवाएं नमूना रिपोर्ट आने से पहले ही दो वर्ष तक बंटती और बिकती रहीं।

इस मामले को जब डॉ. खरे ने उठाया तो सरकार और विभाग ने उनकी जागरूकता का इनाम देने की बजाय उन्हें नोटिस थमा दिया, क्योंकि डॉ. खरे सरकारी अस्पताल में चिकित्सक थे। सरकारी आदमी इस तरह 'पोल खोल अभियान' चलाए, यह आखिर कैसे बर्दाश्त किया जा सकता था!

नोटिस में कहा गया था कि डॉ. खरे जनता को भ्रमित कर रहे हैं। इसके बाद डॉ. खरे ने अपने साथियों और मीडिया जगत से कहा भी था कि वह जो लड़ाई लड़ रहे हैं, वह सामान्य नहीं है। उन्हें धमकियां तक मिल रही हैं, मगर वह न तो डरेंगे और न ही अपनी लड़ाई अधूरी छोड़ेंगे।

एक तरफ डॉ. खरे व अन्य जागरूक लोग अमानक व नकली दवाओं के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे तो दूसरी ओर सरकार से लेकर स्वास्थ्य विभाग तक इसे नकारता रहा। यहा बताना लाजिमी होगा कि जिस दिन डॉ. खरे की मौत हुई, उस दिन के अखबारों में भी राज्य में आयरन के अमानक इंजेक्शन लगाए जाने की खबर छपी थी। इस खबर में भी डॉ. खरे ने अपनी बात दमदार तरीके से कही थी।

डॉ. खरे की बुधवार-गुरुवार की दरम्यानी रात को बड़वानी से भोपाल लौटते वक्त सीहोर जिले में उनकी कार सड़क पर रखे पत्थरों से टकराने के बाद एक वाहन में जा घुसी थी। इस हादसे में डॉ. खरे की मौत हो गई थी, जबकि चालक को मामूली चोटें आईं। सवाल यह है कि सड़क पर पत्थर किसने रखे? डॉ. खरे के सफर पर कौन नजर रख रहा था?

डॉ. खरे की अचानक सड़क हादसे में मौत संदेह के दायरे में है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे उस हादसे को संदिग्ध मानते हैं, जिसमें डॉ. खरे की मौत हुई। उन्हें आशंका है कि नकली दवाओं के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले डॉ. खरे के खिलाफ सुनियोजित षड्यंत्र रचा गया। उन्होंने इस हादसे की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने की मांग की है, ताकि हकीकत सामने आ सके।

वहीं मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव व केंद्रीय समिति के सदस्य बादल सरोज ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर डॉ. खरे की मौत की निष्पक्ष व उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में सरोज ने कहा है कि डॉ. खरे असाधारण ईमानदार, योग्य और समाज के लिए समर्पित व्यक्ति थे। दुर्घटना स्थल की स्थितियां कई आशंकाओं को जन्म देती हैं। इन आशंकाओं का निराकरण किए बिना इस दुर्घटना को साधारण मान लेना उचित नहीं होगा। लिहाजा, इस हादसे की जांच होनी चाहिए।

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