इंदौर। चौईथराम अस्पताल से एक अमानवीय मामला प्रकाश में आ रहा है। यहां अस्पताल प्रबंधन ने एक महिला की लाश को इसलिए बंधक गिरवी रख लिया क्योंकि उसके भाई ने अस्पताल का बिल नहीं चुकाया था।
याद दिला दें कि पैसा वसूली के लिए कई कानूनी रास्ते होते हैं, लेकिन किसी लाश को गिरवी रखने का अधिकार कोई कानून नहीं देता। इसे अमानवीय एवं गंभीर अपराध माना जाता है लेकिन प्रबंधन की गुंडई देखिए कि लाश को 24 घंटे अपने कब्जे में रखने के बाद अस्पताल प्रशासन ने मीडिया को दिए अधिकृत जवाब में भी यही बताया है कि उसके भाई ने बिल अदा नहीं किया था।
ये है भाई का आरोप
मृत महिला रश्मि श्रीवास्तव(देवास) की मौत चौईथराम अस्पताल में बुधवार रात 8 बजे हो गई थी। बिल्डिंग मटेरियल सप्लायर भाई अलोक खरे का आरोप है कि 10 अक्टूबर को मेरी बहन के बच्चेदानी का आपरेशन किया गया था। ऑपरेशन के दौरान लारिंगो स्कोप का बल्प उसकी श्वास नली में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण छूट गया।
इसके बाद मेरी बहन दो दिन बहोश रही और तब से उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। 27 अक्टूबर को एमआरआई में यह बात सामने आई। इसके चलते ब्रेन में पर्याप्त आक्सीजन न मिलने से उसकी मौत हो गई। जिस दिन उसकी मौत हुई उसकी शादी की सालगिरह थी। इसके बाद भी 24 घंटे तक मुझे मेरी बहन का शव नहीं दिया गया और मेरे साथ विवाद किया।
ये है चौईथराम प्रशासन का जवाब
टी चौईथराम के प्रशासनिक अधिकारी डॉ. अमित भट्ट का कहना है कि रश्मि के शरीर में कोई मेडीकल उपकरण नहीं रहा था। उसके उपचार का बिल 13 लाख बना था और उसके भाई ने सिर्फ डेढ लाख रुपए जमा किए। बुधवार को शराब पीकर अस्पताल में हंगामा मचाया था।
ये रहा सुलगता सवाल
सवाल यह उठता है कि लाश को 24 घंटे तक परिजनों के सुपुर्द क्यों नहीं किया गया। इसके पीछे सिर्फ 2 ही कारण हो सकते हैं,
पहला वो जो पीड़ित भाई बता रहा है कि 'आॅपरेशन के दौरान उपकरण शरीर में रह गए जिससे मौत हुई, अस्पताल प्रबंधन को डर था कि पीएम के दौरान इसका पता चल जाएगा, इसलिए लाश को अपने कब्जे में लेकर उपकरण निकाला गया, सेटिंग की गई, फिर लाश को मुक्त किया गया।'
दूसरा वो जो अस्पताल प्रबंधन ने बताया कि 'उसका बिल 13 लाख रुपए हो गया था और भाई ने केवल डेढ़ लाख रुपए जमा कराए थे।'
यदि प्रबंधन की बात को ही मान लिया जाए तो क्या बिल अदा ना करने के कारण लाश को गिरवी रख लेने की कानूनी अनुमति अस्पताल प्रबंधन के पास है या फिर चौईथराम अस्पताल प्रबंधन को कानून का डर ही नहीं रह गया।
देखना रोचक होगा कि कमिश्नर और कलेक्टर इंदौर इस मामले में क्या कोई स्टेप ले पाते हैं या ...।
