किसानों ने हाईकोर्ट में लगाया 15 हजार करोड़ रुपए मुआवजे का दावा

नई दिल्ली। 1911-12 में अंग्रेजों ने कोलकाता की बजाए दिल्ली को राजधानी बनाया। इस दौरान दिल्ली के करीब 150 गांव की जमीन का अधिग्रहण किया गया। इनमें से एक गांव के कुछ लोगों ने दिल्ली हाइकोर्ट में इस अधिग्रहण को ही चुनौती दी है। फिलहाल हाईकोर्ट ने इस मामले में केंद्र, उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार को नोटिस देकर उनका पक्ष पूछा है। मालचा गांव की जमीन पर नई दिल्ली का सरदार पटेल मार्ग है।

पेश मामले में सज्जन सिंह और अन्य ने हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की है। उनके वकील डॉ सूरत सिंह ने कोर्ट में कहा कि दिल्ली को राजधानी बनाने के लिए 21-12-1911 को मालचा गांव समेत 150 गांव की जमीन अधिग्रहण के लिए नोटिफिकेशन जारी किया गया था। 16-12-1912 को भुगतान रिकॉर्ड भी तैयार किया ग़या। याचिकाकर्ता के पुरखे शादी की 155 बीघा 15 बिसवां जमीन के लिए 2217 रुपये 10 आने और 11 पैसे मुआवजा तय किया गया, लेकिन किसी ने मुआवजा नहीं लिया।

याचिका में कहा गया कि जनवरी 2014 के भूमि अधिग्रहण एक्ट में कहा गया है कि अगर किसी ने पांच साल या उससे पहले तक मुआवजा नहीं लिया है या सरकार ने इतने वक्त तक जमीन पर कब्जा नहीं लिया है, तो अधिग्रहण को रद्द माना जाए। कोर्ट के सामने तमाम रिकार्ड भी पेश किए गए।

याचिका में कहा गया है कि बाद में इस जमीन को निजी लोगों और राजनीतिक लोगों को बेच दिया गया। हाईकोर्ट में अपील की गई है कि या तो ये जमीन वापस की जाए या फिर वर्तमान मूल्य के आधार पर मुआवजा दिलाया जाये। डॉ सिंह के मुताबिक ये राशि करीब 15 हजार करोड़ रुपये बैठती है और अगर सभी 150 गांव को जोड़ दिया जाए तो ये 4.50 लाख करोड़ से ज्यादा राशि होगी और पूरा लुटियन जोन इसमें आ जाएगा। फिलहाल हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार, उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार से उनका पक्ष पूछा है। मामले की सुनवाई 24 मार्च को होगी।

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