मोदी सिर्फ कूटनीतिक चेहरा नहीं रहा

राकेश दुबे@प्रतिदिन। कांग्रेस चाहे कितनी ही आलोचना करे, मोदी ने भारतीय प्रधानमंत्री की गरिमा को पुन: स्थापित करने की पुरजोर कोशिश की है |पंडित नेहरू के मामले में ग्लोबल लीडर के रूप में  जहाँ उनका ऊंचा कद, उनकी बौद्धिक छवि और एक जन पक्षधर नेता के रूप में उनकी निजी लोकप्रियता जैसे कारकों की अहम भूमिका हुआ करती थी। मोदी की  न तो अभी वैश्विक नेता के तौर पर उनकी कोई छवि बन पाई है, न ही देश के बाहर उनकी कोई वैचारिक पहचान है।

इन सबसे अलग उनकी अकेली खासियत भारतीय डायस्पोरा के साथ संवाद बना पाने की उनकी क्षमता है, जिसका वे भरपूर कूटनीतिक इस्तेमाल करते  रहे हैं , अब शक्ल बदल रही है, जो उन्हें मिले सत्कार से झलकती है । विरोधियों की दलील है कि यह समर्थन स्वत:स्फूर्त नहीं है, मोदी के ऐसे स्वागत के पीछे मुख्य भूमिका संघ परिवार से जुड़े संगठनों की महीनों की मेहनत और अच्छे-खासे खर्चे की हुआ करती है। अगर यह सच भी है तो इससे विदेशों में भारतीय गोलबंदी की अहमियत कम नहीं होती।

यह बात रेखांकित करने लायक है कि मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद से कूटनीति को एक मानवीय चेहरा प्रदान करने की सुविचारित कोशिश की है। पहली बार उन्होंने दुनिया भर में फैले हिंदुस्तानी समुदाय को एक सक्रिय, संगठित भारतीय पहचान के साथ जोड़ने का प्रयास किया है। इस क्रम में भारत की विदेश नीति में एक ऐसा महत्वपूर्ण आयाम जुड़ा है, जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। लंबे समय से अनिवासी भारतीयों को देश की विकास प्रक्रिया के साथ जोड़ने की चर्चा चल रही है,लेकिन विभिन्न देशों में रह रहे हिंदुस्तानियों के जरिए एक मजबूत हिंदुस्तान की छवि गढ़ने की कोई कारगर कोशिश नहीं हुई। 

जो विशाल भारतीय समाज विदेशों में रहता है, उसकी कोई संगठित राष्ट्रीय पहचान नहीं है। वहां वे गुजराती, पंजाबी, तमिल, मलयाली, यहां तक कि मैथिल, भोजपुरी और मालवी जैसे छोटी-छोटी सांस्कृतिक पहचानों में मगन हैं। ऐसा कोई मंच नहीं है जहां ये भारतीय के रूप में इकट्ठा हों और दो-चार जरूरी चीजों पर अपनी संगठित राय जाहिर करें। मोदी के प्रयासों ने जाने-अनजाने इस एकजुटता की बुनियाद रखी है।

लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com


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