भोपाल। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता अभय दुबे ने बताया है कि मप्र से बडे़ पैमाने पर गायों को गुजरात ले जाकर अवैध कत्लखानों में काटा जा रहा है और गुजरात में प्रतिवर्ष लगभग 22 हजार टन से अधिक मांस का उत्पादन हो रहा है जो कि वर्ष 2001-02 में लगभग 10600 टन था। इतना ही नहीं गुजरात में प्रतिवर्ष 3,88,800 जानवरों को कत्लखाने में काटा जा रहा है।
श्री दुबे ने कहा है कि बेहद शर्मनाक बात है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी देश भर में मांस निर्यात (पिंक रिवेल्यूशन) को लेकर वैमनस्य का वातावरण पैदा कर रहे हैं, जबकि हाल ही में फेडरेशन आॅफ इंडियन चेम्बर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज (फिक्की) ने अपनी रिपोर्ट ‘‘ओवरव्यू आफ इंडियन बफेलो मीट वेल्यू चैन’’ के नाम से प्रकाशित की है, उसमें इस बात का खुलासा किया गया है कि गुजरात में 39 कत्लखाने हैं, जिनमें प्रतिदिन 936 छोटे और 144 बड़े जानवरों को काटा जा रहा है।
आपने कहा है कि एक तरफ जहां नरेन्द्र मोदी देश भर में अपने भाषणों में मांस निर्यात को लेकर यूपीए सरकार के संदर्भ में साम्प्रदायिक वक्तव्य देते हैं, वहीं दूसरी ओर वे भूल जाते है कि भाजपानीत एनडीए ने 2004 में अपने घोषणा पत्र में मीट एक्सपोर्ट को 250 करोड़ से 1000 करोड़ करने की बात कही थी। वर्तमान में मप्र से बड़े पैमाने पर चोरी छिपे गायों को गुजरात ले जाया जा रहा है, जहां उन्हें अवैध कत्लखानों में काटा जाता है। गुजरात के समाचार चैनल टीवी-9 में रोंगटे खड़े कर देने वाली ऐसी घटना का जिक्र किया गया है।
समूची भारतीय जनता पार्टी और उसके प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी को उस आरोपों का भी जवाब देना चाहिए जो मेनका गांधी ने अपने लेख में गुजरात के संदर्भ में लगाये हैं।उन्होंने कहा है कि राजस्थान से हजारों की संख्या में गुजरात के पोरबंदर में गायों को कत्लखानों में काटने के लिए लाया जाता है। ज्ञातव्य है कि पोरबंदर वही पवित्र स्थान है जहां अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जन्म लिया था। यदि इतने बडे़ स्तर पर उनकी जन्म स्थली पर मूक जानवरों का कत्ल किया जा रहा है और मुखर मोदी मौन बैठे हैं। इससे ऐसे संकेत मिलते हैं कि उनकी सहमति से यह ‘‘पापकर्म’’ समूचे गुजरात में बदस्तूर जारी है।
श्री दुबे ने कहा है कि गुजरात के चैनल टीवी-9 के खुलासे से भी यह बात स्पष्ट होती है कि गुजरात सरकार की मिली भगत से समूचा गुजरात अवैध कत्लखानों का अड्डा बन गया है। इससे यह स्पष्ट है कि जहां कभी गुजरात वैश्विक परिप्रेक्ष्य में शांति और अहिंसा का परिचायक था, वही गुजरात अब नरसंहार और पशुसंहार के रक्तरंजित कृतित्व का प्रतीक बन गया है।