योगेश सोनी/रहली/सागर। चाय की दुकानों पर अक्सर पॉलिटिकल गॉसिप या क्राइम स्टोरी ही सुनने को मिलतीं हैं परंतु यदि चाय की चुस्कियों के साथ जीवन का मंत्र भी मिले तो...। यहां एक चाय की दुकान पर सफलता के मंत्र मिलते हैं, वो भी मुफ्त।
नरेन्द्र मोदी ने चाय की चौपालों को चर्चा में ला दिया है। हालांकि इनका अस्तित्व बहुत पुराना है और शायद कथित लफंगे लोकतंत्र का सबसे मजबूत अड्डा भी यही है जो कई करोड़पतियों की नींदें हराम कर देतीं हैं।
चाय की दुकानों पर पॉलिटिकल गॉसिप आम बात है, परंतु इसके अलावा और भी बहुत कुछ होता है। रियल क्राइम स्टोरी यहीं सुनने को मिलतीं हैं। क्रिमिनल प्लानिंग भी यहां कर ली जाती है। कई बड़े आंदोलनों की नींव भी इन्हीं चाय की दुकानों पर रखी गई। इसके अलावा वो सारे उपयोग भी चायटप्पों के हुए जो आपको ध्यान आ रहे हैं। कुल मिलाकर अच्छे और बुरे कम्युनिकेशन का सबसे मजबूत माध्यम है चाय की दुकानें।
परंतु यहां एक चाय की दुकान ऐसी है जहां उपर लिखा सबकुछ नहीं होता, बल्कि यहां चाय का साथ मिलता है एक सक्सेस टिप। रहली पंढलपुर निवासी गुड्डा साहू के अनुसार सन 1980 में जब उन्होने चाय की दुकान खोली थी तभी से स्लेट पर सुविचार लिखकर अपनी दुकान में टांग देते है ताकि चाय पीने आने वाले लोग उसे पढ सके और अच्छी बाते सीख सके।
जमाने में गलत विचारों को फैलते देर नही लगती पर अच्छी बात कम ही लोग कह पाते है ओर दूसरों तक पहुचा पाते है लेकिन मन में कुछ करने की तमन्ना हो तो संसाधन कभी भी बाधा नही बन सकते। गुड्डा साहू ने स्लेट को ही अपना साधन बनाकर जीवन में काम आने वाली बाते और बहुउपयोगी विचार लिखना शुरू किया यह सब केवल मन की खुशी के लिये।
खास बात तो यह है कि यह सिलसिला यही नही थमा इनके पुत्र ने अपने पिता की चलायी परंपरा को आगे बढ़ाया और स्वयं की दुकान पर भी स्लेट पर सुविचारों को लिखना शुरू कर रखा है। गिरिस साहू के अनुसार सदवाक्य लिखने के पीछे यही वजह है कि चाय पीने वाला व्यक्ति चाय के साथ साथ यह सदवाक्य अपने जीवन में उतारे ओर वह सदवाक्य उसके जीवन में नये मोड लाये।
स्थानीय निवासी विजय सेन का कहना हे कि हम लोग बचपन से ही गुड्डा साहू के यहां चाय पीने आ रहै है ओर प्रतिदिन हमें नये नये सदवाक्य पढने मिलते है और सुबह की चाय के साथ साथ एक नया सदवाक्य हमें पढने को मिलता हे जो जीवन में बहुउपयोगी होता है।