भोपाल। टिकिट मिलते ही पार्टी छोड़ देने की घटना शायद देशभर में इकलौती है। भागीरथ प्रसाद ने टिकिट मिलते ही कुछ ऐसे रिएक्ट किया मानो भीषण सड़क दुर्घटना देख चुके किसी इंसान को फिर से वही दृश्य दिख जाए। अंतत: भागीरथ ने अपना दर्द भी सार्वजनिक कर दिया। उन्होंने कहा कि वो सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच पिस रहे थे, कांग्रेस तो कहीं थी ही नहीं। इसलिए उसे छोड़ दिया।
सत्यदेव कटारे ने ही मुझे हरवाया था
बकौल भागीरथ प्रसाद पिछले चुनाव में मुझे कांग्रेस नेताओं के भितरघात के कारण हार मिली। दतिया की तीनों विस सीट और भिंड की लहार सीट जीती, लेकिन कांग्रेस के सिंधिया गुट के नेताओं के प्रभाव वाले क्षेत्र अटेर और मेहगांव से हार मिली। सत्यदेव कटारे और ओपीएस भदौरिया ने मुझे चुनाव हरवा दिया।
इस बार फिर हरवा देते
कांग्रेस ने मुझे इस बार फिर भिंड-दतिया सीट से टिकट दिया था, लेकिन यही कांग्रेस नेता मुझे हराने में फिर एड़ी-चोटी का जोर लगा देते। इसलिए मैंने भाजपा से नाता जोड़ा।
घुटन महसूस कर रहा था
बकौल- डॉ प्रसाद वे पार्टी के दो गुटों (ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह) के बीच पिसकर घुटन महसूस कर रहे थे। यही कारण रहा कि इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट मिलने के बाद भी उन्हें अपनों का डर सता रहा था।
सिंधिया से मिला तो दिग्विजय नाराज हो गए
वर्ष 2009 में डॉ भागीरथ प्रसाद को लोकसभा का टिकट दिग्विजय सिंह की सिफारिश से मिला था। चुनाव हारने के बाद डॉ प्रसाद ने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर भितरघात का आरोप लगाया था। इसके बाद डॉ. प्रसाद ने दूरियां मिटाने के लिए सिंधिया खेमे (सत्यदेव कटारे व ओपीएस भदौरिया) से नजदीकियां बढ़ाई तो दिग्विजय गुट को भी यह रास नहीं आया। दिग्विजय सिंह के खास माने जाने वाले डॉ गोविंद सिंह ने डॉ प्रसाद के कदम को ठीक नहीं माना। ऐसे में डॉ प्रसाद खुद को फंसा महसूस करने लगे थे।
तीस साल से लगातार हार रही कांग्रेस
पिछले तीस साल से भिंड-दतिया लोस सीट पर भाजपा का कब्जा है। भाजपा सांसद अर्गल के विरोध के चलते कांग्रेस को इस बार कुछ उम्मीद थी लेकिन डॉ भागीरथ के पाला बदलने के बाद बची उम्मीद भी खत्म होती दिख रही है। वर्ष 1984 के चुनाव में कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव किशन सिंह जीते थे। उसके बाद से इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है।