मनीष दीक्षित/भोपाल। मुरैना से अच्छे भले सांसद नरेन्द्र तोमर ग्वालियर से मैदान में उतरकर बुरे फंस गए हैं। यहां नरेन्द्र तोमर को अपने पिछले रिश्ते दुख देंगे तो सिंधिया फेक्टर भी नुक्सान पहुंचाएगा और जिस आंकड़े 8/5 की दम पर वो उत्साहित हैं उसका रिजल्ट भी ठीक ठीक नहीं है। असल में वो 421/423 है।
विधानसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा को सफलता मिली है, उससे तोमर आश्वस्त हैं कि परिस्थितियां अनुकूल रहेंगी। विधानसभा चुनाव के परिणामों पर नजर डालें तो ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र की आठ में से पांच सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया है। कांग्रेस के हिस्से सिर्फ तीन सीटें ही आई हैं, लेकिन उम्मीदवारों को मिले वोटों का हिसाब देखें तो यहां पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ रहा है। भाजपा प्रत्याशियों को कुल 4,21,799 वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवारों को 4,23,407 वोट मिले हैं।
भितरघात का डर
नरेंद्र सिंह को भितरघात भी झेलना पड़ सकता है। दरअसल, विधानसभा चुनावों के दौरान यह बातें जमकर उठी थीं कि पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ काम कुछ नेताओं की शह पर हुआ है। तोमर इस बात को जानते हैं कि कुछ लोग खिलाफ में काम कर सकते हैं, इसलिए तोमर ने उस हिसाब से भी अपनी रणनीति बना रहे हैं। चुनाव के दौरान कप्तान सिंह सोलंकी, अनूप मिश्रा, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया, रूस्तम सिंह और बृजेंद्र तिवारी का रुख नए समीकरण बना सकता है। इसके अलावा ग्वालियर की पूर्व सांसद यशोधरा सिंधिया की भूमिका भी इन चुनावों में महत्वपूर्ण रहेगी।
क्यों छोड़ा मुरैना?
सूत्रों की मानें तो तोमर के मुरैना से चुनाव नहीं लडऩे के पीछे प्रमुख कारण क्षेत्र में पकड़ कमजोर होना बताया जा रहा है। इसीलिए उन्होंने काफी पहले मुरैना में सक्रियता घटा दी थी। रही-सही कसर पिछले विधानसभा चुनाव ने भी पूरी हो गई। विधानसभा चुनावों में मुरैना जिले की उन्हीं सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है, जिन्हें नरेंद्र सिंह तोमर के प्रभाव वाला माना जाता है।
श्री मनीष दीक्षित दैनिक भास्कर भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार हैं
