राकेश दुबे@प्रतिदिन। ख़ैर ! जैसे-तैसे देश में फिर एक बार तीसरा मोर्चा बन गया | हमेशा की तरह कांग्रेस के खिलाफ और भाजपा को सांप्रदायिक कहते हुए, जो संसद के भीतर यह जो जमावड़ा जमा है |
क्या वह संसद के बाहर चुनावी रैलियों,सीटों के बंटवारे और तेजी से बदलते राजनीतिक समीकरणों से उपजे वर्तमान के प्रयासों से इतर भविष्य के भारत के निर्माण में कोई योगदान दे सकेगा ? इतिहास के आईने में अब तक बने गठबन्धनों में यह सबसे कम मजबूत और ढीलाढाला दिखाई दे रहा है | कारण सब विषय वस्तु पर सहमत है, परन्तु तरीके और जरूरत पड़ने पर अपने गठ्बन्धन के ही दूसरे साथी से गलाकाट प्रतियोगिता भी ये अपना नैतिक धर्म मानते हैं |
अभी तो मोटामोटी तौर पर यह दिखाई देता है अपने-अपने क्षेत्र के क्षत्रप संसद के भीतर एकजुटता दिखायेंगे और बाहर आने पर सुविधा के संतुलन को बनाने की पुरजोर कोशिश में लगेंगे | उदाहरण के लिए जे.जयललिता और नीतीश कुमार क्या अपने राज्य में वामदलों के लिए कुछ सीटों के छोड़ेंगे ? उत्तर नहीं होगा | ये अपनी दम पर कुछ कर नहीं सकेंगे और प्रधानमंत्री पद का नारदमोह भी नहीं छोड़ पाएंगे | जयललिता समझती है कि इस गठबंधन में शामिल होकर उनकी छवि ‘प्रगतिशील’ बनेगी। इसके लिए उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में करीब-करीब देखा जा रहा है और शायद इसी कारण तमिलनाडु में एआईएडीएमके को अधिक सीटें मिलने की संभावना है, वहां के लोगों को लग रहा है कि डीएमके के अंदरूनी झगड़ों से अच्छा मुख्यमंत्री जयललिता के साथ जाना होगा, क्योंकि उनकी नेता प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवार मानी जा रही हैं। जहां तक नीतीश कुमार का प्रश्न है, तो बिहार में उनका ग्राफ नीचे जा रहा है, क्योंकि कांग्रेस ने राजद और लोजपा के साथ गठबंधन कर लिया है। ये दोनों संप्रग के घटक पहले भी रहे हैं।
मुलायम सिंह के बारे में भी लगभग यही बात है, उनका मुस्लिम कार्ड मुज्जफर नगर के बाद कम काम कर रहा है और कांग्रेस को बाहरी समर्थन का दांव भी फेल हो चुका है, नरेंद्र मोदी की चुनौती उत्तर प्रदेश की बदहाली के कारण मुलायम के वोट बैंक को दरका रही है| ममता का बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र का जनाधार वामदलों को कोई ऐसी तस्वीर नहीं बनाने देगा जो तीसरे मोर्चे की सपने में रंग भर सके|
तर्क के लिए यह मान भी लें, कि सब कुछ मोर्चे की इच्छा के अनुरूप होगा| तो अभी की कुल ९२ सीटें बढकर २७२+ तभी होंगी, जब इन्हें किसी एक बड़े गठबंधन से हाथ मिलाना पड़े| दोनों बड़े गठबन्धनो से यह अभी हाथ जोड़ सके हैं| प्रश्न वही है भविष्य के भारत के निर्माण में इनका क्या योगदान होगा ? जिन्हें, अभी अपने भविष्य का पता नहीं है|