राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत में चुनाव वैसे ही बहुत महंगे होते है| 2014 का आम चुनाव और ज्यादा महंगा होता दिखाई दे रहा है क्योंकि सारे बड़े-छोटे दल इस चुनाव को कार्यकर्ताओं की बजाय महंगी तकनीक और प्रचार माध्यमों के अधिकतम उपयोग से लड़ना और जीतना चाहते हैं|
अभी लोकसभा चुनाव का कार्यक्रम घोषित नहीं हुआ है और अब तक करोड़ों रूपये छवि निर्माण और सभाओं पर फूंके जा चुके हैं| कहने को यह पैसा जनता का नहीं है| बड़े उद्योगपतियों द्वारा दी जा रही मदद है, लेकिन इसकी वसूली जब भी होगी अंतिम छोर पर जनता ही होगी| 1971 की तरह यह “चुनाव व्यक्तिवादी” होता जा रहा है| दोनों ही और से| भाजपा की नजदीकी बड़े उद्द्योग घरानों से ज्यादा है| इकोनॉमिक टाइम्स और नेल्सन के सर्वे में सौ में सत्तर मुख्य कार्यकारी अधिकारियों ने मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहा है। जबकि उनमें से महज सात ऐसे थे, जो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं।
एप्को वर्ल्ड वाइड और रेदिफुज्न जैसी विश्व स्तरीय जनसंपर्क एजेंसियों को जिस धन से भुगतान होगा वह आएगा कहाँ से ? प्रधानमंत्री पद के दोनों दावेदार या उनकी पार्टी निश्चित ही किसी से चंदा लेकर करेंगी और इतना भारी चंदा देने वाले के ही देश और उसकी जनता पर भारी होंगे | इन घरानों की हमेशा से यही नीति रही है , अपने धनबल पर सरकारें बनवाएं और देश की जनता के मुकाबले ज्यादा रियायतें बटोरें| इन्द्रजीत कमेटी के प्रतिवेदन को देश के चुनाव आयोग को पढना चाहिए| वैसे कहने को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उस समिति के सदस्य थे और अब कांग्रेस चुनाव प्रचार समिति में भी है | पहले की बात शायद भूल चुके हैं | पर जनता याद रखे क्योंकि भुगतना तो उसे ही है|
लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com