कलेक्ट्रेट की कुर्की: अपर कलेक्टर ने खरीखोटी सुनाकर कोर्ट की टीम को भगाया

भोपाल। जिला प्रशासन और रेलवे को दी गई मोहलत के 8 दिन बीतने के बाद एक बार फिर किसान अपने वकील और न्यायालय कर्मियों के साथ कलेक्टोरेट पहुंचे, लेकिन उनको बैरंग लौटना पड़ा।

जिला प्रशासन ने कह दिया कि मुआवजा का मुद्दा रेलवे और किसानों के बीच का है, जिसमें हाईकोर्ट ही फैसला करेगी। दूसरी ओर खाली हाथ लौटते किसानों ने अदालत से दोबारा कुर्की के आदेश निकलवाने के बाद 2 जनवरी को निर्णायक कार्रवाई का अल्टीमेटम दिया है।

रेलवे कोच फैक्टरी के लिए 1984 में कृषि भूमि के अधिगृहण के बदले किसानों को साढे छह करोड़ रुपए मुआवजा नहीं दिया है। किसानों का कहना है कि, जमीन का अधिग्रहण जिला प्रशासन ने किया है तो मुआवजा भी दिलाए। इसके लिए किसानों के वकील तथा न्यायालय कर्मियों ने सोमवार को अपर कलेक्टर बसंत कुर्रे से मुलाकात की।

कुर्रे ने हाईकोर्ट में अपील करने की सलाह देकर किसानों के वकील तथा न्यायालय कर्मियों को विदा कर दिया। बाद में किसानों के वकील ने तथा न्यायालय कर्मी 2 जनवरी को कुर्की की कार्यवाही करने का कहकर रवाना हो गये। इससे पूर्व 20 दिसंबर को भी कलेक्ट्रेट में वाहनों की कुर्की स्थगित कर दी गई थी तथा एडीजे बीके द्विवेदी के निर्देश पर कुर्की करने आए दल को बैरंग लौटना पड़ा था। इस दौरान कलेक्टोरेट के मेन गेट पर सुरक्षाकर्मी चौकस रहे ।

1984 से भटक रहे किसान

प्रशासन द्वारा 1983-84 में भानपुर, करारिया व छोला के 44 किसानों की 420 एकड़ जमीन रेलवे कोच फैक्टरी के लिए अधिग्रहित की थी। हालांकि उस समय किसानों को मुआवजा दिया था, परंतु कम मुआवजे से असंतुष्ट 18 किसानों ने कोर्ट में प्रकरण दाखिल कर दिया था। वर्ष 2004 में कोर्ट ने किसानों को मुआवजा देने के आदेश दिये थे। किसानों ने कोर्ट में डिक्री फाइल कर दी। इसमें कोर्ट ने सुनवाई के बाद कलेक्टर कार्यालय की कुर्की के आदेश दिये थे। इसके बाद कुर्की करने पहुंचे दल से जिला प्रशासन ने 8 दिन का समय मांगा था। मामला नहीं सुलझने पर 20 दिसंबर को कुर्की की कार्रवाई होनी थी, परंतु इस दिन प्रशासन ने फिर आठ दिन की मोहलत मांग ली थी।
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