मात्र 5 मिनट जानिए नक्सलवाद का इतिहास

हरिहर शर्मा/ आज कुछ लीक से हटकर लिख रहा हूँ | कैसे जन्म हुआ नक्सलवाद का ? क्या उसके लिए कम्यूनिस्ट पार्टियों का अंतर्संघर्ष ही जिम्मेदार है ?

सिलीगुड़ी के एक जमींदार परिवार में 1918 में चारू मजमुदार का जन्म हुआ| पिता एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, अतः स्वाभाविक ही कोलेज छोड़ने के बाद 1937 – 38 में उन्होंने कांग्रेस ज्वाईन की तथा बीडी मजदूरों को संगठित करने में शक्ति लगाई किन्तु बाद में सीपीआई में सम्मिलित होकर किसान आन्दोलन से जुड़े|

जल्द ही जलपाईगुडी के गरीबों में उनका सम्मान बढ़ गया| 1942 के विश्वयुद्ध काल में सीपीआई पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो चारु को भी भूमिगत होना पडा| 1948 में पुनः सीपीआई पर प्रतिबन्ध लगा और तीन वर्ष चारु मजमुदार को जेल में रहना पडा| जनवरी 1954 में जलपाईगुड़ी की ही अपनी साथी भाकपा सदस्य लीला मजूमदार सेनगुप्ता के साथ वे मंगल परिणय सूत्र में बंधे|

बीमार पिता और अविवाहित बहिन के साथ नवयुगल सिलीगुड़ी में रहने लगे| अतिशय गरीबी में भी उन्होंने मजदूरों, चाय बगान मजदूरों व रिक्शा चालकों को संगठित करना जारी रखा| 1962 के भारत चीन युद्ध के समय उन्हें फिर जेल में रहना पडा, जहां खराब स्वास्थ्य के बीच भी उन्होंने माओ के विचारों का अध्ययन किया|

1964 में जब सीपीआई का विभाजन हुआ तब वे सीपीआई (एम) के साथ गए | 65 से 67 के बीच दिए गए उनके भाषण और लिखे गए लेख आगे चलकर “ऐतिहासिक आठ दस्तावेज” कहलाये, जो नक्सलवादी विचार का आधार बने|

1967 में जब सीपीएम ने चुनाव लड़ने व उसके बाद बंगला कांग्रेस के साथ मिलकर साझा सरकार बनाने का निर्णय लिया तो चारु ने इसे क्रान्ति के साथ धोखा करार दिया| उसी वर्ष पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलवाडी में अपनी जमीन जोतने का न्यायालयीन आदेश होने के बाबजूद 2 मार्च को स्थानीय जमींदारों के गुंडों ने एक आदिवासी युवा पर हमला किया तथा जबरदस्ती भूमि पर कब्जा कर लिया| इस के बाद चारू मजूमदार के नेतृत्व में किसान कार्यकर्ताओं ने विद्रोह का प्रारम्भ किया|

किसानों के विद्रोह शुरू करने पर सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने विद्रोहियों को सख्ती से दबाने का प्रयास किया और " विद्रोह " के 72 दिनों में एक पुलिस उप निरीक्षक सहित नौ आदिवासियों की मौत हो गई| केंद्र की कांग्रेस सरकार ने भी इस दमनात्मक कार्रवाई का समर्थन किया| इस घटना की गूँज पूरे भारत में हुई और इस प्रकार नक्सलवाद का जन्म हुआ|

16 जुलाई को 1972 को कोलकाता में चारु मजूमदार को गिरफ्तार कर लिया गया तथा 28 जुलाई को लाल बाजार पुलिस लॉक अप में उनकी मृत्यु हो गई| लाल बाज़ार लॉक अप की पुलिस हिरासत में वे दस दिन रहे किन्तु इस दौरान किसी को भी उनसे मिलने या देखने की अनुमति नहीं दी गई| यहाँ तक कि वकील, परिवार के सदस्य या डॉक्टर को भी नहीं| लाल बाजार लॉक अप सबसे भयानक और क्रूर अत्याचार के लिए देश भर में जाना जाता था| उसी लॉक अप में 28 जुलाई 1972 को 4:00 पर चारू का निधन हो गया| क्रांतिकारी संघर्ष को गंभीर झटका लगा| भाकपा (माले) की केंद्रीय सत्ता बिखर गई|

अन्याय अत्याचार और शोषण का विरोध करने वाले किसी नायक की स्वतंत्र भारत में इस प्रकार की त्रासद मृत्यु निश्चय ही कलंक है| कितनी विचित्र बात है कि उनके सहयोगी कनु सान्याल ने भी 2010 में आत्मह्त्या का मार्ग अंगीकार किया| अपने अंतिम दौर में कनु ने स्वीकार भी किया कि नक्सलवाडी आन्दोलन अपनी दिशा से भटक चुका है| कहाँ शोषण का विरोध करने वाले वे लोग और कहाँ निर्दोषों के आज के हत्यारे|

  • लेखक श्री हरिहर शर्मा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े प्रख्यात विचारक एवं मिसाबंदी हैं। उनका अपना जीवन भी आदर्श नागरिक की जीवित कथा है।

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