भोपाल। क्या प्रदेश के गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता आगामी विधानसभा चुनाव में वह कर पाएंगे जो उनसे पहले इस पद पर रहे लोग नहीं कर पाए? हम बात कर रहे हैं गृह मंत्री के चुनाव परिणामों की। पिछले कई वर्षो में गृह मंत्री रहते हुए अधिकांश नेता चुनाव हार गए।
एक को तो टिकट ही नहीं मिला था। चूंकि विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, यह देखना रोचक होगा कि उमाशंकर गुप्ता इस परंपरा को तोड़ पाएंगे या नहीं।
गृह मंत्री के हारने के पीछे के कारण शायद पुलिस विभाग की बड़ी जिम्मेदारी, कार्यकर्ताओं की मंत्री से ज्यादा अपेक्षा, विभाग की छवि और क्षेत्र के लोगो की उपेक्षा हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के वरिष्ठ नेता हिम्मत कोठारी प्रदेश के गृह मंत्री थे, जो कि निर्दलीय पारस सकलेचा से हार गए थे, हालांकि पार्टी के नेता उनकी हार का कारण कुछ और मानते हैं। दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल में उनके विश्वस्त महेंद्र बौद्ध का भी यही हश्र हुआ था। वे सेंवढ़ा विधानसभा से गृह मंत्री रहते हुए चुनाव में पराजित हो गए थे।
सत्यदेव कटारे का तो टिकट ही कट गया था। इससे पहले मोतीलाल वोरा की कैबिनेट में गृह मंत्री रहे कैप्टन जयपाल सिंह भी चुनाव में सफल नहीं हो सके थे। सुंदरलाल पटवा की सरकार में गृह मंत्री रहे कैलाश चावला पिछले दो दशकों में एकमात्र ऐसे गृह मंत्री रहे हैं, जिन्होंने मंत्री पद पर रहते हुए चुनाव जीता। भास्कर से चर्चा में पूर्व गृह मंत्री महेंद्र बौद्ध ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं और क्षेत्र के लोगों की गृह मंत्री से बहुत अपेक्षाएं होती हैं जैसे थाने से छुड़वा दो, भर्ती करवा दो, बंदूक के लाइसेंस बनवा दो, प्रमोशन करवा दो आदि।
ऐसा नहीं है कि गृह मंत्री अपने कार्यकर्ताओं को खुश रखने की कोशिश नहीं करते, लेकिन शायद सभी को खुश नहीं कर पाते। वहीं जयपाल सिंह का कहना है कि उनका विधानसभा क्षेत्र ही बदल दिया गया था, जिसके कारण वे चुनाव में पराजित हुए। वे यह भी स्वीकार करते हैं कि गृह मंत्री से लोगों की अपेक्षाएं ज्यादा रहती हैं।
गृह मंत्री उमाशंकर गुप्ता भी मानते हैं कि गृह मंत्री का काम टफ होता है। शायद यही कारण हो। भास्कर से चर्चा में उन्होंने कहा कि वे पूरी सावधानी रखे हुए हैं और उन्हें अपनी विधानसभा क्षेत्र के लोगों पर पूरा भरोसा है। अब देखना यह है कि उमाशंकर गुप्ता गृहमंत्रियों की हार के इस ट्रेंड को बदल पाते हैं या नहीं।