मंडला। शिक्षक दिवस के मद्देनजर राज्य शासन ने अध्यापक संवर्ग के लिये तथाकथित समान कार्य समान वेतन देने बाबद् 3 पृष्ठ का आदेश जारी कर दिया है। आदेश को देखने के बाद अध्यापक इस बात को लेकर आश्चर्यचकित हैं कि एक कल्याणकारी राज्य के मुख्यमंत्री गुरूपूर्णिमा और स्वतंत्रता दिवस जैसे पावन अवसर पर अध्यापकों को समान कार्य समान वेतन देने की घोषणा करते हैं और शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या में छल से भरा हुआ आदेश जारी करते हैं।
राज्य अध्यापक संघ के जिला शाखा अध्यक्ष डी.के.सिंगौर और सचिव रवीन्द्र चैरसिया ने संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर बताया कि समान कार्य समान वेतन के आदेश में शिक्षक के समान वेतन देने का कोई वादा नहीं हैं। अध्यापकों ने सरकार की चार साल में समान कार्य समान वेतन की बात मान ली लेकिन इसके बाद आदेश में ईमानदारी नहीं छलक रही है। 1998 से नियुक्ति अध्यापकों के सेवा की गणना 2007 से करना कहां से न्याय संगत है।
1998, 1999, 2001, 2003 और 2005 में नियुक्त अध्यापकों को एक समान वेतन पर लाना कैसे उचित है। समान वेतन की बात करना और भत्ते आदि का लाभ न देना कैंसे समान वेतन माना जा सकता है।
सरकार ने अध्यापक और शिक्षक के वेतन में अंतर निकालने में कपट पूर्ण व्यवहार किया है। आज यदि अध्यापक शिक्षक होते तो कितना वेतन मिलता और अभी कितना मिल रहा है यह अंतर सरकार ने नहीं निकाला। इस 3 पृष्ठ के आदेश से अच्छा तो छत्तीसगढ़ सरकार का चार लाइन का आदेश है जिससे वहां के शिक्षाकर्मियों को समान कार्य का समान वेतन मिल रहा है। राज्य अध्यापक संघ ने इस आदेश को पूर्ण विसंगतिपूर्ण बताया है और अब अपनी बात सरकार से आंदोलन के माध्यम से ही रखने की बात की है। जिसका निर्णय 9 सितम्बर की प्रांतीय बैठक में लिया जायेगा।