भोपाल। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार जिन कॉलेजों में राघवन कमेटी की सिफारिशों का पालन नहीं किया जा रहा एवं रैगिंग पाई जाती है तो उनकी मान्यता रद्द करने में कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए। RKDF Reging कांड में छात्रा के सुसाइड नोट और प्राफेसर की गिरफ्तारी के बाद अब इस मामले में जांच की जरूरत भी नहीं रह गई है एवं मान्यता रद्द कर देने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं।
सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार RKDF प्रबंधन लगातार इसी दिशा में काम कर रहा है और वो बीजेपी व कांग्रेस के अलावा मीडिया को भी मैनेज करने में जुटा हुआ है। यही कारण है कि अनीता शर्मा ने सुसाइड नोट में जिनके नाम लिखे उनकी आनन फानन गिरफ्तारियां करवा दी गईं, ताकि आक्रोश ना बढ़ पाए और लोग खामोश हो जाएं।
यदि ध्यान से देखें तो समझ आएगा कि मीडिया में आ रहीं तमाम खबरें, मुख्यसचिव की बैठक और गृहमंत्री के निर्देश, सबकुछ अनीता शर्मा के गुनहगारों को गिरफ्तार करने के संदर्भ में ही रहे। RKDF प्रबंधन की लापरवाही और कॉलेज में चल रही रैगिंग उजागर होने के बाद कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई की मांग कहीं से नहीं उठाई जा रही है।
पढ़िए क्या हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश
उच्चतम न्यायालय ने रैगिंग की घटनाओं पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को 11 फरवरी 2009 को निर्देश दिया कि वे रैगिंग रोकने में विफल शिक्षण संस्थाओं की मान्यता रद्द कर दें।
न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत, न्यायमूर्ति डीके. जैन तथा न्यायमूर्ति मुकुन्दकम शर्मा की खंडपीठ ने शिक्षण संस्थानों में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए राघवन कमेटी की सिफारिशों को सख्ती से लागू करने का राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश देते हुए कहा कि जो शिक्षण संस्थान रैगिंग रोकने में असफल रहती हैं, उनकी विषम परिस्थिति में मान्यता रद्द कर दी जाए।
खंडपीठ ने शिक्षण संस्थानों में रैगिंग की घटनाएं अनवरत जारी रहने पर नाराजगी जताते हुए राज्य सरकारों को ऐसे संस्थानों पर अंकुश लगाने के लिए वित्तीय सहायता रोकने का भी निर्देश दिया। न्यायाधीशों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को भी ऐसे संस्थानों को वित्तीय सहायता नहीं देने को कहा है।
खंडपीठ ने भारतीय चिकित्सा परिषद, यूजीसी और विभिन्न विश्वविद्यालयों को सलाह दी है कि वे नामांकन से संबंधित विवरणिका में रैगिंग को लेकर राघवन समिति की सिफारिशों को प्रमुखता से शामिल करें, ताकि विद्यार्थियों में इस संबंध में जागरूकता पैदा हो।
न्यायालय ने रैगिंग में शामिल छात्रों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने तथा जांच कार्य को प्रभावित करने वाले विद्यार्थियों को संस्थान से निलम्बित करने की भी हिदायत दी गई है। न्यायालय ने रैगिंग को लेकर प्रथम दृष्ट्या साक्ष्य मिलने पर संबंधित विद्यार्थी को पुलिस को सौंपने और उसके खिलाफ तत्काल जांच शुरू करने का निर्देश दिया।
खंडपीठ ने कहा कि जांच कार्य को जो कोई भी प्रभावित करने या टालने का प्रयास करे, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। इससे पहले न्यायालय ने मई 2007 के अपने अंतरिम आदेश में भी रैगिंग में लिप्त विद्यार्थियों के खिलाफ प्रमुखता से प्राथमिकी दर्ज करने की बात कही थी।