लोकपंचायत,नई दिल्ली। उच्च शिक्षा को राष्ट्र व प्रदेश की रीढ़ कहा जाता है। लेकिन यह रीढ़ अब वर्तमान प्रदेश सरकार की नीतियों एवं महत्वपूर्ण प्रयासों के अभाव में कमजोर हो रही है।
विभिन्न कालेजों के छात्र छात्राओं एवं प्रदेश भर में कार्यरत अतिथि विद्वानों के कथनानुसार ‘प्रदेश सरकार अन्धी,बहरी और गूंगी हो गयी है,क्योकि अधिकाँश कालेज आज उचित बैठक व्यवस्था,भवन, एवं प्राध्यापक व सहा. प्राध्यापक की कमी से जूझ रहे हैं परन्तु सरकार को न कुछ दिखाई दे रहा है और न कुछ सुनाई दे रहा है अपितु इनके स्थान पर कार्य कर रहे अतिथि विद्वानों की समस्याओं से अवगत होने के बाबजूद भी कुछ करने को तैयार नहीं है।
वर्तमान में प्रदेश के 342$25 = 367 महाविद्यालयों मे पिछले 17¬-18 वर्षाे से सहायक प्राध्यापकों की भर्ती नही होने से 3077$125 (लगभग) पद रिक्त हैं। इन पदो ंके विरूद्ध अतिथि विद्वान कार्य कर रहे हैं। शासन ने अनेक स्थानों पर रिडिपलायमेन्ट किया है ताकि अध्यापन व्यवस्था संचालित हो सके। परन्तु जो प्रोफेसर अपने महीविद्यालय में कभी कभार कक्षाएं लेते हैं उनसे 20 से 40 किमी दूर जाकर कक्षांए लेने का विश्वास जताना कहीं छात्रो के साथ बेमानी तो नहीं। ऐसी स्थिती में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण कार्य कैसे हो। इन अतिथि विद्वानो ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से तथा राजेन्द्र शुक्ल के साथ उच्च शिक्षा मंत्री से मुलाकात की आवेदन दिये, हड़ताल की, आंदोलन किया, लाठियाँ खाई किंतु वहाँ से भी उन्हें आश्वासन ही दिया गया था कि आपको मासिक निश्चित वेतन दिया जायेगा, किंतु स्थिति वहीं की वही ।
उच्च शिक्षा मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इन शिक्षकों की स्थिति पर प्रदेश सरकार का यह रूखा रवैया शनैः-शनैः इस व्यवस्था को रोगग्रस्त कर रहा है। यदि सरकार ने शीघ्र ही इस ओर ध्यान नहंी दिया तो यह दीमक संपूर्ण उच्चशिक्षा व्यवस्था को खोखला कर देगा।
कहाँ कितना मिलता है वेतन
राज्य वेतन रूपये में
छत्तीसगढ़ - 18,840 प्रतिमाह
गुजरात - 16,500 प्रतिमाह
उत्तरप्रदेश - 16,000 प्रतिमाह
मध्यप्रदेश - 120 प्रति कालखण्ड (3से 8-9हजार मात्र)
सीधी बात-प्रदेश के जनप्रतिनिधियों की उच्च शिक्षा व्यवस्था पर टिप्पणी
अजय सिंह नेता प्रतिपक्ष काँग्रेस ,भोपाल
शासन काहे को ध्यान देगा ,उसे मुददों पर राजनीति करने से फुरसत नहीं है। शिक्षा में सुधार आदि पर कोई ध्यान नहीं है। महाविद्यालयों में शिक्षको की कमी से स्थिति दयनीय है। शासन को चाहिए कि वह अतिथि विद्वानों एवं छात्रों के भविष्य को ध्यान रखते हुए में मौलिक सुविधाएं मुहैया कराने पर ध्यान दे, न कि सिर्फ भाषण व विज्ञापन पर।
गिरिजा शंकर शर्मा भा.ज.पा.विधायक इटारसी,होशंगाबाद
अधिकाँश रेगुलर प्रोफेसर का परफारमेंस अच्छा नहीं है,हमारे जिले के प्रोफेसर की भोपाल से आने -जाने की ट्रेन फिक्स रहती है ।अतिथि विद्वान अच्छा कार्य कर रहे हैं।किन्तू इतने कम वेतन में शिक्षण कार्य नहीं हो सकता है। उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति संतोष जनक नहीं है।इस दिशा में कोशिशें हो रहीं हैं ऐसा लगता नहीं है,सरकार को रेगुलर भर्ती करनी चाहिए।
दिलीप दुबे विधायक भाजपा सिहोरा(जबलपुर)
इन रिक्त पदो के विरूद्व अतिथि विद्वानों की सहायता से अध्यापन कार्य तो हो ही रहा है और ये अतिथि विद्वानों पढाते भी जिम्मेदारी से हैं हाँ यह अवश्य है कि उन्हें वेतन अन्य प्रोफेसर के बराबर नहीं मिल रहा है काम तो वही करते हैं। शासन इस ओर भी ध्यान दे रहा
धुल सिंह भाजपा विधायक भीकन गाँव खरगोन
अतिथि विद्वानों से काम चलाया जा रहा है। यह बात तो सही है कि रेगुलर और अतिथि विद्वानों के वेतन में अत्यधिक असमानता है जबकि कार्य समान है। माननीय मुख्य मंत्री जी से निवेदन है कि उच्च शिक्षा में रिक्त पदों को यथा शीघ्र भरा जाए जिससे उच्च शिक्षा में प्रदेश की स्थिति और अधिक मजबूत हो।
दुर्गा लाल विजय श्योपुर भा.ज.पा. पूर्व विधायक
यह बात सही है कि अधिकाँश कालेजो में अध्यापन कार्य अतिथि व्याख्याताओं के भरोसे चल रहा है।सरकार को रिक्त पदों को भरने के लिये तेजी से कार्य करना चाहिए।
जब हम अपना घर छोड़कर प्रदेश के किसी भी इलाके मे काम करने के लिये तैयार है तो सरकार हमारी समस्या पर ध्यान क्यों नही देती है ? सरकार हमारा फिक्स वेतन करने से क्यों कतरा रही है ? माननीय मुख्यमंत्री जी ने इस बार चुनावी वर्ष में सबको कुछ न कुछ दिया है किन्तु अथिति विद्धानो को कुछ भी नही। आखिर प्रदेश की उच्च शिक्षा व्यवस्था को संभालने वाले हम लोगों से सरकार की क्या दुश्मनी है?
डा अजय सिंह,अतुल सेंगर अतिथि विद्धान