संविदा कर्मचारियों का ऐलान: ओवर कान्फीडेंस में ना रहें शिवराज, परिणाम पलट देंगे

भोपाल। नियमितीकरण सहित अन्य मांगों को लेकर म.प्र. के विभिन्न विभागों एवं परियोजनाओं में संविदा पर कार्यरत कर्मचारियों ने राजधानी भोपाल के अम्बेडकर मैदान में धरना देकर प्रदर्शन किया।

संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के बैनर तले दिये गये धरने में संविदा कर्मचारियों ने एक सुर में कहा कि दो लाख संविदा कर्मचारी तथा उनके परिवार के 15 सदस्य उस राजनैतिक पार्टी या उस सरकार को वोट देगें जो संविदा कर्मचारियों को नियमित करेगी। इस बार सरकार संविदा कर्मचारियों के वोटो से ही बनेगी क्योंकि म.प्र. में दो लाख संविदा कर्मचारी कार्य कर रहे हैं, संविदा कर्मचारियों तथा उनके परिवार के 15 सदस्यों को मिला लिया जाए तो संविदा कर्मचारियों और उनके परिवारों के वोटों की संख्या 30 लाख होती हैं।  


म.प्र. में कुल मतदाता 4 करोड़ 60 लाख हैं लेकिन मतदान 70 प्रतिशत ही होता है। इस प्रकार इस बार 3 करोड़ 22 लाख वोट मतपेटी में डलेगें । संविदा कर्मचारियों के पास 30 लाख वोट हैं। जो  कि 3 करोड़ 22 लाख वोटों का दस प्रतिषत हैं। वर्तमान में जिस राजनैतिक पार्टी को पांच प्रतिषत वोट दूसरी पार्टी से अधिक मिल जाते हैं उसकी सरकार बन जाती है। संविदा कर्मचारियों के पास तो 10 प्रतिशत वोट हैं। इसलिए इस बार संविदा कर्मचारी जिस राजनैतिक पार्टी को वोट देगें उसकी सरकार बनेगी।

संविदा कर्मचारियों को सरकार से भीख मांगने और गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं है । धरने को सम्बोधित करते हुये संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेष अध्यक्ष रमेश राठौर ने कहा कि सरकार से हम अपना हक और अधिकार मांग रहे हैं, क्योंकि सरकार जब बिना किसी भर्ती प्रक्रिया के द्वारा नियुक्त शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, गुरूजियों जिनकी नियुक्ति सरंपचों, ग्राम समुदायों के द्वारा की गई थी, और उनको मानदेय केन्द्र सरकार की परियोजनाओं से प्राप्त धनराशि से मिलता था, ऐसे शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, गुरूजियों को कैबिनेट में पदों का निर्माण कर नियमित कर सकती है तो हम संविदा कर्मचारी जिनकी नियुक्ति विधिवत परीक्षा, साक्षात्कार, चयन प्रक्रिया के माध्यम से सक्षम प्राधिकारी के द्वारा की गई है, तो ऐसे संविदा कर्मचारियों को सरकार नियमित क्यों नहीं कर सकती है।

जबकि संविदा कर्मचारियों को नियमित करने से राज्य सरकार पर किसी प्रकार का वित्तीय भार नहीं आयेगा क्योंकि अधिकांश संविदा कर्मचारी राज्य सरकार द्वारा संचालित परियोजनाएं जिनमें केन्द्र सरकार द्वारा आर्थिक सहायता दी जा रही है, में कार्य कर रहे हैं और ये योजनाएं दस-पन्द्रह वर्षो से चल रही हैं संविदा कर्मचारियों को कार्य करते हुये 10 से 15 वर्ष हो गये हैं संविदा कर्मचारियों की औसत आयु 40 से 45 वर्ष के बीच में है।

वेतन और भत्तो की राशि केन्द्र सरकार दे रही है, और ये योजनाएं आगामी दस से पन्द्रह वर्ष और चलनी हैं, जब तक योजनाएं चलेंगी तब तक संविदा कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जायेगें। और जो संविदा कर्मचारी विभागीय पदों के विरूद्व कार्य कर रहे हैं उनका बजट राज्य सरकार से पूर्वतः ही प्राप्त होता रहेगा,  इसलिए यदि संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण कर दिया जाता है तो म.प्र. शासन पर वित्तीय भार भी नहीं आयेगा।

उसके बाद भी म.प्र. सरकार संविदा कर्मचारियों को नियमित नहीं कर रही है जिससे 2 लाख संविदा कर्मचारियों और 30 लाख मतदाताओं में आक्रोश है। धरने में जिन संविदा कर्मचारियों की सेवा अकारण समाप्त की गई हैं उनको वापस लिये जाने की पुर जोर मांग की गई। तथा म.प्र. ग्रामीण सड़क योजना के तकनकी सहायकों, राज्य शिक्षा केन्द्र में कार्यरत ए.पी.सी. आई.डी., मोबाईल स्त्रोत्र सलहाकरों, पूर्व से कार्य कर रहे कम्प्यूटर आपरेटरों की सेवाएं समाप्ति का विरोध किया गया तथा यह निर्णय लिया गया कि संविदा कर्मचारी नियमितीकरण की मांग सहित अपनी अन्य मांगों को पूरी करवाने के लिए 1 अगस्त को सामुहिक अवकाश तथा 8 अगस्त से अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले जायेगें ।

क्या है संविदा कर्मचारियों की पीड़ा:—

(1) सौतेला व्यवहार:- 
म.प्र. शासन ने शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, और गुरूजियों जिनकी नियुक्ति सरंपचों और ग्राम समुदायों ने मानदेय आधार की थी । शासन ग्राम पंचायतों को शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों और गुरूजियों को मानदेय देने के लिए अनुदान देती थी, शासन को भी ये अनुदान केन्द्र सरकार  देती थी। ऐसे शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, और गुरूजियों को म.प्र. सरकार ने मंत्री परिषद की बैठक में पदों का निर्माण कर नियमित कर दिया, नियमितीकरण के बाद भी इनको केन्द्र सरकार की परियोजनाओं से वेतन और भत्ते दिये जा रहे हैं, लेकिन जो संविदा कर्मचारी विधिवत सक्षम नियुक्ति प्रक्रिया और चयन प्रक्रिया के माध्यम से आएं है, और योजनाओं और परियोजनाओं में लगे हैं, ऐसे संविदा कर्मचारियों को सरकार नियमित नहीं कर रही है।
जिस तरह से शिक्षाकर्मियों, पंचायत कर्मियों, गुरूजियों को सरकार ने नियमित कर दिया है, तथा नियमितीकरण के पश्चात उनको वेतन केन्द्र सरकार की परियोजनाओं से ही प्राप्त हो रहा है , वैसे ही संविदा कर्मचारियों को नियमित कर दिया जाए, और वेतन भत्ते परियोजनाओं के बजट से ही दिया जाए , जिससे सरकार पर वित्तीय भार भी नहीं आयेगा।
 
(2) काम नियमित कर्मचारी से ज्यादा और वेतन आधा:- 
संविदा कर्मचारी नियमित कर्मचारियों से ज्यादा काम कर रहे हैं, वेतन देने की बात आती है तो नियमित कर्मचारियों से आधा दिया जाता है, संविदा कर्मचारियों को वेतनवृद्वि, समय पर मंहगाई भत्ता, चिकित्सा भत्ता, चिकित्सा प्रतिपूर्ति, चिकित्सा अवकाश, मकान किराया भत्ता नहीं दिया जाता।
(3) संविदा बढ़ाने के लिए देना पड़ता है एक माह का वेतनः- 
संविदा कर्मचारियों को हर साल अपनी संविदा बढ़वाने के लिए संविदा बढ़ाने वाली कमेटी सदस्यों और सक्षम अधिकारियों को एक माह तक का वेतन देना पड़ता है। जिलों में संविदा बढ़ाने का अधिकार कलेक्टर और सीईओ के पास रहता है, इसलिए विभागीय अधिकारी संविदा बढ़ाने के लिए कलेक्टर और सीईओं के नाम पर पैसा वसूलते हैं।
(4)  पैसा भले ही लैप्स हो जाए पर वेतन और भत्ते नहीं दिये जाते:- 
केन्द्रीय प्रवर्तित योजनाओं में कर्मचारियों के वेतन और भत्ते की राशि केन्द्र सरकार देती हैं वर्ष के अंत में हजारो करोड़ रूपये लैप्स हो जाता है लेकिन कर्मचारियों को समय पर मंहगाई भत्ता, चिकित्सा भत्ता, मकान किराया भत्ता, चिकित्सा अवकाश नहीं दिया जाता।
(5) नियमित करने से सरकार पर वित्तीय भार नहीं उसके बाद भी नियमित नहीं कर रही सरकार:- 
विभागों में संचालित परियोजनाएं दस - पन्द्रह वर्षो से चल रही हैं संविदा कर्मचारियों को कार्य करते हुये 10 से 15 वर्ष हो गये हैं वेतन और भत्तो की राशि केन्द्र सरकार दे रही है, और ये योजनाएं आगामी दस से पन्द्रह वर्ष और चलनी हैं।
संविदा कर्मचारियों की औसत आयु 40 से पैतालीस वर्ष के बीच में है, जब तक योजनाएं चलती रहेंगी तब तक संविदा कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जायेगा इसलिए म.प्र. शासन पर वित्तीय भार भी नहीं आयेगा।
(6) संविदा कर्मचारी मर जाए तो चंदा करके उसकी अन्त्येष्टी करते हैं:- 
यदि किसी संविदा कर्मचारी की मृत्यु हो जाए, या कोई गंभीर दुर्घटना हो जाए तो, संविदा कर्मचारी चंदा करके उसकी अन्तेष्टी करवाते व गंभीर दुर्घटना में घायल होने पर उसका इलाज चंदा करके करवाते हैं।
(7) संविदा कर्मचारियों को हटाते वक्त नेर्सिगिक न्याय सिद्वांत का पालन नहीं:- 
संविदा कर्मचारियों को जब चाहे तब हटा दिया जाता है । संविदा कर्मचारियों को संविदा की धमकी देकर उल्टे सीधे काम करवाये जाते हैं, जब जांच होती है तो सारा दोष संविदा कर्मचारी पर मढ़ कर संविदा से हटा दिया जाता है, नियमित कर्मचारी खुद बच जाते, हटाने के पहले संविदा कर्मचारियों को अपना पक्ष रखने का अवसर भी नहीं दिया जाता।
संविदा कर्मचारी सीधे बर्खास्त और नियमित कर्मचारी निलंबित होते हैं, जांच के समय सेटिंग करके बच जाते हैं, लेकिन संविदा कर्मचारी को सीधे सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है, कोई जांच या अपना पक्ष रखने का अधिकार नहीं दिया जाता । जैसे अंग्रेजों के शासन के रोलेक्ट कानून बनाया गया था जिसमें भारतीयों को अंग्रेज बिना अपना पक्ष रखे जेल में डाले देते थे, और जमानत भी नहीं होती थी ।    

(8) अधिकारी नियमित करना नहीं चाहते जनप्रतिनिधियों को चिंता नहीं:- 
संविदा कर्मचारी नियमित हो जायेगें तो अधिकारियों की गुलामी कौन करेगा इसलिए अधिकारी संविदा कर्मचारियों को नियमित करना नहीं चाहते, और जनप्रतिनिधि जिनको जनता चुनकर भेजती है उन्हें संविदा कर्मचारियों की चिंता नहीं । अधिकारी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को अपने हिसाब से समझाते रहते हैं, क्योंकि जन - प्रतिनिधियों के आस - पास यही लोग रहते हैं ।

(9) पदोन्नती, समयमान वेतनमान नहीं:- 
जिस पद पर भर्ती हुये उन्हीं पदों पर दस से पन्द्रह वर्ष काम करते हुये हो जाते हैं पदोन्नती नहीं  समयमान वेतनमान नहीं जो संविदा कर्मचारी पन्द्रह सालों से काम कर रहा है और जिस संविदा कर्मचारी की नियुक्ति आज हुई है उसको भी वही वेतन और जो पन्द्रह साल पहले निुयक्त हुआ था उसको भी वही वेतन दिया जाता है।
रमेश राठौर
प्रदेश अध्यक्ष
मो. 9425004231

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