मंडला। मध्यान्ह भोजन व्यवस्था पर जब तब सवाल उठते ही रहते हैं विशेष कर भोजन में इल्ली, भोजन खिलाने के स्थान, मीनू के अनुरूप भोजन न होना, जैसी बातों पर अक्सर अंगुली उठाई जाती है।
यद्यपि मध्यान्ह भोजन व्यवस्था से अध्यापक समुदाय को लगभग पृथक कर दिया गया है लेकिन बच्चे चूंकि साढ़े दस से साढ़े चार बजे तक अध्यापकों की जिम्मेदारी और निगरानी में रहते हैं तो ऐसें में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था के कारण भी बच्चों के स्वास्थ्य एवं जीवन पर कोई संकट आता है तो इसकी जवाब देही अध्यापकों की भी बनती है। चूंकि अध्यापक नियमित सेवा का कर्मचारी है इसलिये अध्यापक से ही व्यवस्था के लिये सारी अपेक्षाएं की जाती है।
राज्य अध्यापक संघ की जिला इकाई अध्यक्ष डीके सिंगौर ने अपने सभी अध्यापक साथियों से अपील की है कि वे इस मामले में गंभीर रहें व अपने दायित्वों का अच्छी तरह से निर्वहन करें यदि हम स्कूल के बच्चों की परिस्थितियों में अपने बच्चों को देखें तो हम अपने दायित्वों का निर्वहन ज्यादा अच्छे ढ़ंग से कर सकते हैं।
मध्यान्ह भोजन की निगरानी अध्यापकों द्वारा प्रदर्शित भी की जानी चाहिये ताकि बालक और पालक दोनों में भय का वातावरण निर्मित न हो छोटी से छोटी शंका पर पूरी गंभीरता दिखानी चाहिये। वर्तमान में सरकार द्वारा निर्देश दिये गये हैं कि बच्चों को भोजन खिलाने से पहले अध्यापकों द्वारा भोजन चखा जाना चाहिये। इस मामले में संघ ने आदेश में संशोधन की मांग करते हुये कहा है कि इसमें रसोइये और स्व सहायता समूह वालों को भो भोजन चखना अनिवार्य किया जाना चाहिये।