राकेश दुबे@प्रतिदिन। बीमार होकर बिस्तर पर रहना किसी सज़ा से कम नहीं है | कम से कम प्रतिदिन लिखने वालों के लिए, और मोबाईल फोन उससे बड़ी सज़ा है | अनेक सवालों के जवाब लोग आपकी खैरियत के बहाने पूछ ही लेते हैं |
पिछले सप्ताह पूछे गये सवाल आपकी नजर है , और यह तय कर लिया है की बिलानागा लिखूंगा | ७५ प्रतिशत भगवान की मर्जी २५ प्रतिशत डाक्टरों की | सवालों में था नरेंद्र मोदी ने कुत्ते का पल्ला किसे कहा? बुर्के के बंकर से क्या मतलब है ? दिग्विजय सिंह किस राघव जी की बात कर रहे हैं और क्यों ?
इन सवालों के उत्तर और प्रति उत्तर आ चुके हैं, फिर भी अपनी छोटी बुद्धि और अपने पाठकों के प्रति अपने दायित्वनिर्वहन हेतु जो समझा उसे सार्वजनिक करना अपना धर्म समझता हूँ | सबसे पहले ये तीनों प्रसंग भारतीय समाज के लिए हितकर नहीं है | इनके कहने और बाद में चतुराई भरी सफाई देने से आपके दोहरे अर्थो वाले संवाद का छिछोरापन समाप्त नहीं हो जाता |
अब दूसरी बात दिग्विजय सिंह के खिलाफ जिस नारे की अद्धी पर मुकदमा दर्ज़ हुआ है, वैसी ही एक अद्धी उछालकर इंदौर में अशांति और कर्फ्यू लगवाने वाले आज कहाँ है ? किसी से नहीं छिपा है | भारतीय धर्म सबसे पहले संयम की शिक्षा देते हैं | वाणी पर संयम ज्यादा जरूरी है | यह दोनों इतने बेचारे नहीं है कि जो कह रहे हैं उसका अर्थ और प्रभाव नहीं जानते | अंतर इतना है एक हिन्दू कहने पर गर्व कर रहा है, दूसरा निकलने के लिए अपने आराध्य का सहारा बेचारगी में ले रहा है |
- लेखक श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं प्रख्यात स्तंभकार हैं।
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