ये हैं देवेन्द्र वर्मा, बोले तो जुगाड़ एक्सप्रेस, प्रतिनियुक्ति पर गए थे और 4 प्रमोशन समेट लिए

भोपाल। एक हैं देवेन्द्र वर्मा, मध्यप्रदेश को यादाश्त पर जोर डालना पड़ेगा ​लेकिन छत्तीसगढ़ के हर खास जानता है इन्हें। अभी 6 दिसम्बर 2012 को ही छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रमुख सचिव बने हैं। आईएएस नहीं हैं फिर भी बन गए। जब प्रतिनियुक्ति पर गए थे अनुसंधान अधिकारी हुआ करते थे। कानूनन अधिकार नहीं था फिर भी 4 प्रमोशन समेट लिए। अब हाईकोर्ट के पचड़े में फंस गए है।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने विधानसभा के प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा को नोटिस जारी करते हुये पूछा है कि वे किस अधिकार से छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रमुख सचिव की हैसियत से काम कर रहे हैं. वर्मा को उपस्थित होकर इस बारे में जवाब देने को कहा गया है. देवेंद्र वर्मा की छत्तीसगढ़ विधानसभा में सचिव पद पर नियुक्ति की अर्हता को लेकर रायपुर निवासी वीरेंद्र पांडे और राकेश चौबे ने अधिकार पृच्छा याचिका दायर की थी.


गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ विधानसभा के सचिव देवेंद्र वर्मा, मध्यप्रदेश में अनुसंधान अधिकारी के पद पर कार्यरत थे. राज्य बंटवारे के समय इन्हें प्रतिनियुक्ति पर छत्तीसगढ़ विधानसभा भेजा गया. 6 जुलाई, 2001 को छत्तीसगढ़ में पदोन्नति पाकर उप-सचिव बनाये गये और केवल दो साल बाद 29 सितंबर, 2003 को वर्मा को अपर-सचिव बना दिया गया. इसके बाद 9 जुलाई, 2004 को देवेंद्र वर्मा को विधानसभा का सचिव बना दिया गया. इतना ही नहीं, पिछले साल 6 दिसंबर को देवेंद्र वर्मा को छत्तीसगढ़ विधानसभा का प्रमुख सचिव बना दिया गया.

पदोन्नति के सामान्य नियम ये हैं कि 5 साल में एक बार ही किसी की पदोन्नति की जा सकती है. लेकिन वर्मा के मामले में नियम किनारे कर दिये गये. याचिकाकर्ता का आरोप है कि वर्मा को छत्तीसगढ़ राज्य में पदोन्नति दी ही नहीं जा सकती.

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 11 मई 2004 को जारी अंतिम आवंटन सूची में देवेंद्र वर्मा को अनुसंधान अधिकारी, पुस्तकालय होने की जानकारी दी गई है. उस समय वर्मा छत्तीसगढ़ विधानसभा में कार्य कर रहे थे. 1 नवंबर 2011 को मध्यप्रदेश के राजपत्र में भी छत्तीसगढ़ विधानसभा में वर्तमान में प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा को अनुसंधान अधिकारी पुस्तकालय बताया गया है.

याचिकाकर्ता का आरोप है कि छत्तीसगढ़ देश की अकेली ऐसी विधानसभा है, जहां गैर आईएएस को बतौर सचिव नियुक्त किया गया है. विधानसभा सचिवालय सेवा एवं भर्ती शर्तें नियम में यह स्पष्ट है कि लिखित परीक्षा व साक्षात्कार के बाद नियुक्ति की जाएगी व दो साल की पीरिवीक्षा अवधि के बाद संतोषजनक कार्य पाने की स्थिति में स्थायी नियुक्ति दी जाएगी. लेकिन वर्मा के मामले में ऐसा नहीं किया गया. इसके अलावा इस नियुक्ति में आरक्षण नियमों की भी अनदेखी की गई. याचिका में गलत तरीके से नियुक्त की वजह से विधानसभा की कार्रवाई में भर्राशाही और वर्मा पर अनुचित तरीके से अपात्र लोगों को विधानसभा सचिवालय में नियुक्ति देने का भी आरोप लगाया गया है.

याचिका को लेकर अधिवक्ता प्रशांत जायसवाल की प्रारंभिक सुनवाई के बाद जस्टिस सतीश के अग्निहोत्री की एकल पीठ ने छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रमुख सचिव देवेंद्र वर्मा को उपस्थित होकर बताने को कहा है कि वे किस अधिकार के तहत छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रमुख सचिव के पद पर कार्य कर रहे हैं. इस मामले में मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव से भी जवाब तलब किया गया है.

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